Monday, November 25, 2024

नि:स्वार्थता वक्ता को सुनकर किया नशे का त्याग : मुनि पुगंव श्री सुधासागर जी

श्रमण संस्कृति संस्थान शिविर हुआ प्रारंभ
दो हजार साल बाद बेटियां बैठेगी गादी पर

ललितपुर। मेहनत करने पर भी सफलता को प्राप्त नहीं हो रहें।कौन है जो सफ़लता नहीं दें रहा तुमने अपने परम हितकारी से चोरी की उनसे चोरी की तो सौ जन्म में भी सफल नहीं हो सकतें।एक व्यक्ति प्रवचन में बैठा था उस दिन गुटके पर प्रवचन हो रहा था उस व्यक्ति ने आज तक परिवार वालों के कहने पर गुटके का त्याग नहीं किया था लेकिन महाराज जी के प्रवचन से प्रभावित होकर त्याग कर दिया। परिवार वालों ने महाराज श्री को आकर कहा आपको देवता सिद्ध हैं मैं वोला मुझे देवताओं की जरूरत नहीं है मैं देवताओं को सिद्ध करने साधु नहीं देवता मेरे पीछे घूमते हैं उस व्यक्ति ने बताया कि परिवार वालों को मेरी आवश्यकता है आप गुटका छोड़ने की बात कह रहे थे तो मैं ये सोच रहा था कि महाराज जी को मेरे गुटका छोड़ने से क्या लाभ है आपको क्या लेना देना आपको क्या लाभ है आप इतनी गर्मी में सिर्फ गुटका पर एक घंटे से बोल रहें थे ये जो घर के लोग आये है इनका तो स्वार्थ है मैंने सोचा कि आज जो बोल रहे थे इनका कोई स्वार्थ नहीं है फिर भी कह रहे हैं तो यदि मैंने आज नहीं छोड़ा तो मेरी बर्बादी निश्चित है। यही विचार करके मैंने आज आपके प्रवचन सुनकर गुटका के साथ नशें का त्याग कर दिया छोड़ दिया परिवार तो स्वार्थी हो सकता है संत नहीं उक्त आश्य के विचार मुनि पुगंव श्रीसुधासागरजी महाराज ने ललितपुर ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

बेटी दिवस पर कहा अब बेटिया गादी संभालेगी
मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने बताया कि ललितपुर में परम पूज्य मुनि पुगंव श्री सुधासागर जी महाराज के सान्निध्य में श्रमण संस्कृति संस्थान शस्त्री वर्ग का दस दिवसीय सम्मेलन अभिनन्दनोदय तीर्थ में चल रहा है। जिसमें बालकों के साथ बेटियां भी भाग ले रही है जो शास्त्रसभा की गददी पर बैठ कर धर्म समारोह को सम्बोधित कर सकेगी। कल मुनि पुगंव ने कहा था कि दो हजार साल बाद विधिवत् शिक्षा ग्रहण कर बेटिया शास्त्री आचार्य बनकर धर्म सभा करेंगी वे बेटी दिवस पर बोल रहें थे । भगवान महावीर स्वामी की परम्परा में पहली बार गुरुकुल से बेटियो को शिक्षित किया जा रहा है । जो श्रमण संस्कृति संस्थान में विद्या अध्ययन कर रही है । जहां सभी प्रकार की सुविधाएं निशुल्क है ।

हितेशी की दृष्टि अलग होती है

मुनि पुगंव ने कहा कि एक व्यक्ति वो है जो मांगने पर हमें दे‌ नहीं रहा तो दुश्मन है दुसरे वे जो हमारे अभिभावक है हमारे हितेशी तो उनका दृष्टिकोण अलग है वो जानती है कि वह तुम्हारे हितकारी है जो ये वो जानते हैं कि ये वस्तु तुम्हारे लिए अहितकारी है ये विचार करना है किसने मना किया जिस चीज की मना किया आपके हितेशी है कि नहीं ।

जिस चीज को मना करें उसको छोड़ दें
ये निर्णय आत्मा में से हों जाये गुरु ने जिस बात को मना किया उसको नहीं माना तो समझ लेना तुम्हारा पतन प्रारंभ हो गया दुश्मन जिस चीज की मना करें तो उस काम को जरूर कर लेना कौन मना कर रहा है ये सूत्र बना लेना दुश्मन कभी तुम्हारा हितेशी हो ही नहीं सकता दुर्योधन को जब नगन होकर बुलाया तो श्री कृष्ण जी ने उसे रास्ते में देखा तो कहते हैं कि नग्न होकर जा रहा है शर्म नहीं आती कहां एक लंगोटी लगा लें और यहीं लंगोटी दुर्योधन की मृत्यु का कारण बनी हमें कुछ भी नहीं पता है कि क्या अच्छा है क्या बुरा है कुछ भी पता नहीं है हम तो ये जानते हैं कि मां गुरु कभी स्वप्न में भी अहित कारी नहीं हो सकता जब तुम्हारी आत्मा से आवाज आये कि मेरे अभिभावक मेरे गुरु कभी अहितकर नहीं हो सकते।

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