आगरा। निर्यापक मुनिपुगंव श्री सुधासागर जी महाराज ने आगरा के हरीपर्वत स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के अमृत सुधा सभागार में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रकृति की कुछ नियत नियम ऐसे है जो हमारे लिए निर्णय लेने में दिक्कत करते है एक ओर प्रकृति ने नियम बनाया तुम अकेले कुछ नही कर सकते हो,इस दुनिया मे जीने के लिए तुम्हे दूसरों का सहारा लेना पड़ेगा,कोई भी हो लेना ही पड़ेगा। वही दूसरी ओर कह दिया जो पर के आलम्बन पर जीता है वो कभी सुखी हो नही सकता, दोनो विरोधी बाते है इन्हें कैसे सुलझाए। एक ओर कह दिया कि माँ-बाप का सहारा लिया बिना जो जीता है जो उद्दंड है, अनाथ है और जो माँ-बाप के सहारे पर जीता है वो पंगु है, असमर्थ है। बस प्रकृति के इस पेंचीदे दाव को सुलझाने के लिए गुरु जिनवाणी जिनेंद्र देव की है। एक निश्चित व्यवस्था में यदि आप ऋण देते है तो कोई पाप नही और आप ऋण लेते है ईमानदारी से कि हम ब्याज भी देगे, हम चुकायेगे भी तो आप कोई पाप नही कर रहे है। व्यापार में चलता है बस नियत साफ रखना। और नियत यदि साफ है तो आपका ये व्यापार ग्राहक व मालिक जो सम्बन्ध है वही ऋण देने व लेने का सम्बंध है। इसमे किंचित मात्र भी पाप नही है बस बेईमानी नही होना चाहिए, लिया है तो दूँगा। ऋण के बिना तो संसार ही नही चलेगा। सहयोग और ऋण दोनो में एक चुनना पड़े तो ऋण को चुनना क्योंकि ऋण तो चुकाने का भाव होता है सहयोग में नही। आप कहेंगे कि बिना एक दूसरे के कैसे चलेगा तो अपन समझते है कि सहयोग लेने का अधिकारी कौन और सहयोग किसे देना चाहिए। सहयोग देना है उसको जो इतना पुण्यहीन है कि वो लौटने में समर्थ नही है, कुछ भी करो उसके पास कुछ है ही नही, देना है तो दो, नही देना है तो मत दो, वो उपकार भी नही मानेगा, मौका पड़े तो उपकारी का भी नाश कर देगा।जिन्दगी भर सबके बीच रहना सरल है लेकिन एक घण्टे अकेले रहना कठिन है, एक दिन भर रहना कठिन है। मौन रहना सौभाग्य है लेकिन हम सौभाग्य में अकुला गए, नही रह पा रहे है। बुरी आदतों से हम बोर नही हुए और अच्छी आदतों से बोर हो गए। क्या है तुम्हारा दुर्भाग्य। मंदिर आने से बोर हुए हो या घर जाने से बोर हुए हो। तीनो संध्याओ में भगवान की पूजा भक्ति कही है ये सौभाग्य है लेकिन इसे लेने के लिए भी पुण्य चाहिए, इस आनंद को लेने के लिए भी योग्यता चाहिए। पूजन करने से तुम बोर हो जाते हो लेकिन रोटी खाने से कि कब तक यही रोटी खाऊंगा। माला गिनते समय तुम्हे नींद आ जाती है और नोट गिनते समय। सौभाग्य के योग्य तुम हो ही नही। बारात में बैंड वालो के लिए जैसे पाप कार्यो में तुम कितने दिलेर हो जाते हो ,एक रात की 4-5 करोड़ो की होटले बुक करते हों। सावधान यदि कमाई की ओर दान नही दिया तो कर्म तुम्हारी किस्मत को सील कर देगा। ये दान तुम्हारे पापों को धोने के लिए स्नान है। कमाई के साथ दान जरूरी है| गन्दगी के साथ स्नान जरूरी है पाप के साथ पुण्य जरूरी है, संसार के साथ परमार्थ जरूरी है। जैसे जैसे संसार के खर्च बढ़ते जाए वैसे वैसे धर्म के खर्च भी बढाते जाना महानुभाव। धर्मसभा का संचालन मनोज बाकलीवाल द्वारा किया गया| इस दौरान गुरुदेव के चरणों में बाहर से आए हुए गुरुभक्तों ने श्रीफल भेंटकर मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया| धर्मसभा का संचालन मनोज जैन बाकलीवाल द्वारा किया गया। धर्मसभा में अदिति जैन गाजियाबाद द्वारा मंगलाचरण किया गया| धर्मसभा में प्रदीप जैन पीएनसी,निर्मल मोठ्या, मनोज जैन बाकलीवाल नीरज जैन जिनवाणी,पन्नालाल बैनाड़ा, हीरालाल बैनाड़ा,जगदीश प्रसाद जैन, राजेश जैन,ललित जैन, मीडिया प्रभारी आशीष जैन मोनू,राजेश सेठी,शैलेन्द्र जैन,राहुल जैन,शुभम जैन,विवेक बैनाड़ा,अमित जैन बॉबी, पंकज जैन, मुकेश जैन,समकित जैन, अनिल जैन शास्त्री,रूपेश जैन, केके जैन,सचिन जैन,दिलीप कुमार जैन, अंकेश जैन,सचिन जैन,समस्त सकल जैन समाज आगरा के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
शुभम जैन, मीडिया प्रभारी