मनोज नायक/भिण्ड। हमारे पास दो प्रकार के बगीचे हैं। एक आत्मा रूपी दूसरा शरीर रूपी। इन दोनों बगीचों के लिए हमारे पास खाद सामग्री सीमित है, पानी भी सीमित है। अब आप उस सामग्री को आत्मा रूपी बगीचे में डाल दो या शरीर रूपी बगीचे में डाल दो। अगर शरीर का ध्यान रखोगे तो आत्मा सूख जाएगी और आत्मा का ध्यान रखोगे तो शरीर सूख जाएगा। यदि आत्मा का उपकार करोगे तो शरीर का अपकार होगा और शरीर का उपकार करोगे तो आत्मा का अपकार होगा। उक्त विचार गणाचार्य श्री विरागसागर महाराज के परम प्रिय शिष्य बक्केशरी आचार्य श्री विनिश्चयसागर महाराज ने ऋषभ सत्संग भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पूज्य गुरुदेव ने कहा कि गुरु कहते हैं कि शरीर तो हमारा है ही नहीं। वह तो यहीं छूट जायेगा। इसीलिए जो हमेशा साथ रहे, उसी का साथ दो, उसी का ध्यान रखो। अगर आत्मा का उपकार करोगे तो आपको वह सुख मिलेगा जो आपको आज तक प्राप्त नहीं हुआ। आत्मा का उपकार करने के लिए अपने ज्ञान को समीचीन करना होगा। अहिंसा धर्म का पालन करना होगा। हमेशा सत्य बोले, झूठ न बोलें, चोरी न करें, अनावश्यक रूप से वस्तुओ का संग्रह न करें।