इंजिनियर अरुण कुमार जैन
बचपन की स्मृतियाँ प्यारी,
मेरी बहिनें सबसे न्यारी.
एक बड़ी व एक हैं छोटी,
नेह, दुलार व आदर देतीं.
हाथ पकड़ चलना सिखलाया,
तुम्हें गोद में साथ खिलाया.
प्रेम, नेह, झगड़ा जीवन था,
इंद्रधनुष सा अनुरागी था.
पढ़े, बढ़े हम मिलकर बहिना,
साथ साथ हिलमिलकर रहना.
फिर आगे का भी जीवन था,
दीदी को उनके घर भेजा.
नव संसार बना था उनका,
नव उद्यान सजा था उनका.
छोटी बहिन गयी फिर नवगृह,
प्यारी निधि नव घर की बनकर.
आँखों में आँसू आये थे,
नेह, प्रेम ममता लाये थे.
माँ का घर तो अब सूना था,
नये सृजन का नूतन युग था.
नन्हे मुन्ने थे बगिया में,
हर्षित करते थे हम सबको.
बड़े हुए, हम जैसे मिलकर,
प्यारे सपनों को पर देकर.
उनके भी संसार सृजित हैं,
अपनी धरती व अम्बर हैं.
सब अपनों में व्यस्त मस्त हैं,
नेह, प्रेम अनुराग बद्ध हैं.
जीवन चलता, सतत चलेगा,
नेह, प्रेम, अनुराग बढ़ेगा.
सुख, दुःख आते व जाते हैं,
हर्ष, प्रेम, विपदा लाते हैं.
हम सब मिलकर आगे बढ़ते,
हर पल क्षण का स्वागत करते.
बचपन याद बहुत आता है,
सुखद स्मृतियां संग लाता है.
जब भी जहाँ कहीं बहिना हों,
नेह, प्रेम, ममता झरना हों.
सुखी रहें प्रति पल मुस्काएँ,
तम को आलोकित कर पाएं.
नेहपर्व रक्षाबंधन पर,
राखी के पावन धागों पर.
आदर व अनुराग बढ़ाएं,
संस्कृति अपनी अमर बनायें.
हर बहिना हो प्यारी न्यारी,
हर भाई उन पर बलिहारी.
नूतन एक संसार बनेगा,
नेह, प्रेम, ममता जहाँ होगा.