Monday, November 11, 2024

जिनवाणी श्रवण से दूर हो जाते मोह माया, निर्मल व पावन होती आत्मा: इन्दुप्रभाजी म.सा.

कनफ्यूज रहने वाला नहीं बता सकता सही राह, आत्मज्ञानी ही बन सकता पथ प्रदर्शक: समीक्षाप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाडा।
जिनवाणी श्रवण करने से अनादिकाल से जो मोह, माया, राग, द्वेष, लोभ आदि हमारी आत्मा से चिपके हुए वह दूर हो जाते है और मन निर्मल-पावन बन जाता है। हम सच्चे मन से भगवान की भक्ति करते है तो सुफल अवश्य प्राप्त होता है। गुरूओं ने अपने पसीने से धर्म की कमाई की जिसका लाभ हम भी उठा रहे है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में रविवार को श्री अरिहन्त विकास समिति के तत्वावधान में मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. की 133वीं जयंति एवं एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान रूपचंदजी म.सा. की 96वीं जयंति के उपलक्ष्य में अष्ट दिवसीय गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव के चौथे दिन महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि श्रावक व्रत अंगीकार करने पर हमारा यह भव ही नहीं परभव भी सुधर जाएगा। जीवन की सार्थकता भोग में नहीं होकर त्याग में ही है। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि ये दुनिया मायावी है और आत्मा ही असली है। खुद कनफ्यूज रहने वाला कभी सही राह नहीं दिखा पाएगा। जो आत्मज्ञानी होगा वही जीवन में सही पथप्रदर्शक हो सकता है। इंसान जानता है कि वह अकेले आया ओर वैसे ही वापस भी जाना है इसके बावजूद वह अनजान बनकर परिग्रह बढ़ाने में जुट जाता है। उन्होंने कहा कि हम जिनवाणी के जितने नजदीक रहेंगे उतने संसार के धक्कों से दूर रहेंगे। साध्वीश्री ने श्रावक के 12 व्रतों में से सामायिक व्रत की महिमा बताते हुए कहा कि सामायिक करने से जन्मों-जन्मों के पापों का क्षय होने के साथ दान, शील, तप व भावना का लाभ मिलने से मोक्ष के चारों दरवाजे खुल जाते है। सामायिक के माध्यम से सबसे बड़ा दान अभयदान भी कर सकते है। इस जन्म में हमने धर्म ज्ञान नहीं किया तो फिर देव ओर मनुष्य गति की प्राप्ति नहीं हो सकती।

मत कर काया का अभिमान, मत कर माया का अहंकार- हिरलप्रभाश्रीजी

धर्मसभा में तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने कहा कि ये शरीर अनित्य व अशाश्वत होने से प्रभु कहते है कि प्राणी को क्षण मात्र का भी प्रमाद नहीं कर अपने कार्य में लगे रहना चाहिए। शरीर कांच के गिलास के समान है जो गिरते ही बिखर सकता है इसलिए शरीर से आत्मा जुदा हो उससे पहले जितना अधिक हो सके धर्म साधना कर लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह भाग्यशाली होते है जिन्हें गुरूओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उन्होेने शरीर को क्षणभंगुर बताते हुए भजन ‘‘मत कर काया का अभिमान, मत कर माया का अहंकार’’ की प्रस्तुति दी तो माहौल भावपूर्ण हो गया। धर्मसभा में यश सिद्ध स्वाध्याय भवन के मंत्री मुकेश डांगी, पूनम संचेती, प्रतिभा बड़ोला, प्रेमदेवी भण्डारी, उदयपुर से पधारे उदयसिंह जैन आदि ने गुरू मिश्री-रूप का गुणानुवाद किया। धर्मसभा का संचालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। इस अवसर पर लक्की ड्रॉ के माध्यम से चयनित 11 भाग्यशाली श्रावक- श्राविकाओं को पुरस्कृत किया गया।धर्मसभा में भीलवाड़ा शहर एवं आसपास के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे सैकड़ो श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

तेला तपस्वियों के सामूहिक पारणे सम्पन्न

रूप रजत विहार में पहली बार हो रहे चातुर्मास में तपस्या की गंगा प्रवाहित हो रही है। रविवार को धर्मसभा में सुश्राविका निर्मला मुरड़िया ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के स्वर गूंजायमान हो उठे। गुरू द्वय पावन अष्ट दिवसीय जन्मोत्सव के तहत तेला तप साधना करने वाले तपस्वियों के सामूहिक पारणे कराए गए। पारणा के लाभार्थी श्री गुलाबचन्द्रजी, राजेन्द्रकुमारजी सुकलेचा परिवार रहा। तेला तप सम्पन्न करने वाले तपस्वियों के प्रति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने मंगलकामना व्यक्त की। तेला तप करने वाले कुछ श्रावक-श्राविकाओं पारणा नहीं करके तपस्या गतिमान रखते हुए रविवार को चार उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।

पैसठिया यंत्र जाप के माध्यम ये तीर्थंकरों की आराधना

अष्ट दिवसीय गुरू द्वय पावन जन्मोत्सव के तहत रविवार सुबह प्रवचन से पूर्व पैसठिया यंत्र जाप का आयोजन किया गया। इसके माध्यम से 24 तीर्थंकरों की आराधना एवं भक्ति करते हुए सर्वमंगल एवं सुख-शांति की कामना की गई। पैसठिया यंत्र का जाप तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने पूर्ण कराया। जाप में भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुए।

धर्म साधना को समर्पित रविवार का दिन

चातुर्मास में रविवार को दिन सुबह से लेकर शाम तक धर्मसाधना के लिए समर्पित हो रहा है। सुबह सूर्योदय के समय प्रार्थना के साथ साधना का दौर शुरू हो गया। इसके बाद सुबह 8 बजे से युवा वर्ग की क्लास हुई। इसमें 25 से 50 वर्ष उम्रवर्ग के कई श्रावक शामिल हुए जिन्हें तत्वचिंतिका समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने मार्गदर्शन प्रदान किया। नियमित प्रवचन के बाद दोपहर 1 से 2 बजे तक बच्चों की धर्म संस्कार क्लास आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी एवं तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. ने ली। दोपहर 2 से 3 बजे तक नियमित नवकार मंत्र जाप के बाद प्रश्नमंच प्रतियोगिता हुई। इसमें लोकमान्य संत शेरे राजस्थान पूज्य रूपचंदजी म.सा. के जीवन के बारे में पूछा गया। शाम को श्राविकाओं की नियमित प्रतिक्रमण साधना हुई।

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