Saturday, November 23, 2024

आचार्य सौरभ सागर महाराज सानिध्य में 21वां जैन आध्यात्मिक ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर, युवा ले रहे है धर्म की शिक्षा

जयपुर। राजधानी के प्रताप नगर स्थित सेक्टर 8 के शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आचार्य सौरभ सागर महाराज के सानिध्य में समाज के युवाओं (लड़के/लड़की) जिनकी उम्र 40 साल तक है को लेकर 21 वां जैन आध्यात्मिक ज्ञान संस्कार शिक्षण शिविर का आयोजन 24 अगस्त से लगातार चल रहा है। शिविर के चौथे दिन समाज के हर वर्ग के लड़के, लड़कियां, बालक, बालिका भाग लेकर धर्म की शिक्षा ले रहे है और जीवन में धर्म के महत्व की शिक्षा ले रहे है। रविवार को चौथे दिन 300 से अधिक युवाओं ने शिविर में भाग लिया। शिविर संयोजक राकेश जैन पचाला और मनीष जैन टोरडी ने बताया की आचार्य श्री के सानिध्य में आयोजित शिविर के माध्यम से ना केवल युवाओं को धर्म की शिक्षा दी जा रही है बल्कि युवाओं आध्यात्मिक ज्ञान का महत्व भी सिखाया जा रहा है उन्हे संस्कार वान बनाने का शिक्षण शिविर चलाया जा रहा है। इस शिविर को तीन भागों में बांटा गया है जिसमें एक वर्ग बालक और बालिकाओं का दूसरा वर्ग अविवाहित युवक और युवतियों का और तीसरा वर्ग विवाहित युवक और युवतियों का। तीन भागों में बांटकर शिविर में बालक/बालिकाओं को धर्म की शिक्षा दी जा रही है, अविवाहित युवक और युवतियों को ज्ञान और संस्कार की शिक्षा दी जा रही है और विवाहित युवक और युवतियों को परिवार, समाज और धर्म तीनों की शिक्षा उपलब्ध करवाई जा रही है। निर्देशक जिनेन्द्र कुमार जैन जीतू ने बताया की इस शिविर में प्रताप नगर सेक्टर 8 का युवा मंडल और बालिका मंडल ना केवल अपनी सेवाएं दे रहे है बल्कि शिविर में भाग लेकर अपने आपको धर्म और समाज के अध्यात्म का ज्ञान भी प्राप्त कर रहे है इस शिविर में जगतपुरा, श्योपुर रोड़, सांगानेर, प्रताप नगर सेक्टर 3, 5, 17, मानसरोवर, बापू नगर सहित विभिन्न कॉलोनियों के युवा बढ़ – चढ़कर भाग ले रहे है। यह शिविर 29 अगस्त तक संचालित होगा और 30 अगस्त को रक्षा सूत्र पर्व एवं भगवान श्रेयांसनाथ स्वामी का मोक्ष कल्याणक पर्व मनाया जायेगा।

तुम अपनी श्रद्धा दिखाओ, हम तुम्हें भगवान से मिलेंगे: आचार्य सौरभ सागर

शिविर के चौथे दिन युवाओं को संबोधित करते हुए आचार्य सौरभ सागर महाराज ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि – “श्रद्धा जीवन की अमर सम्पदा है। श्रद्धा के अभाव में परमात्मा तत्व की उपलब्धि नहीं होती। अश्रद्धालु कभी किसी को अपना इष्ट स्वीकार नहीं करता है। बिना इष्ट को स्वीकार किए आत्म निष्ठ नहीं बना जाता, हमारा श्रद्धान ही हमें भगवान देने में कारण है इसलिए मैं कहता हूं तुम इन्हें (देव, शास्त्र, गुरु) श्रद्धा दो, वे (देव, शास्त्र, गुरु) तुम्हे भगवान देंगे। आगे आचार्य श्री ने कहा कि – श्रद्धा का अर्थ झुकना है। किसी भी वस्तु की प्राप्ति के लिए झुकना आवश्यक है। सिंह को जब शिकार करना होता है तो वह पहले झुकता है, बाद में शिकार की ओर छलांग लगाता है। वह भी पहले झुकता है, बाद में पाता है। कुएं से पानी निकालने के लिए झुकना आवश्यक है, बिना झुके कुएं से पानी नहीं निकाल पाते। उसी प्रकार बिना श्रद्धा समर्पण के परमात्मा को नहीं प्राप्त कर सकते। जिस प्रकार घर में महिलाएं पहले झाड़ू लेकर झुकती है, तभी सफाई कर पाती है। उसी प्रकार बिना श्रद्धा के झुके आत्मा की सफाई नहीं होती, परमात्मा का मिलन नहीं होता।

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