Sunday, September 22, 2024

ब्रह्मचारी राजकुमार जी गंगवाल बने क्षुल्लक श्री 105 उपहार सागर जी

जयपुर। अरावली की पहाड़ियों के मध्य स्थित आमेर नगर, जो अपने इतिहास की गौरव गाथा को बता रहा है। यहीं पर स्थित संकट हरण पार्श्वनाथ जिनालय फागी वाला में प्रातः बेला में भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण कल्याणक महोत्सव में श्री जी का पंचामृत अभिषेक हुआ। पश्चात उपाध्याय भगवन्त के श्री मुख से शांति धारा उच्चरित हुई ,संसार के समस्त जीवों के मंगल की कामना की गई पश्चात मोक्ष कल्याणक महोत्सव के प्रतिस्वरूप निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। उक्त जानकारी देते हुए प्रचार संयोजक रमेश गंगवाल ने बताया आज जब सुबह की खिलती धूप में आमेर जिनालय के मंदिर की सारी सीढियों पर एक-एक करके ऊपर चढ़ते गए, सामने ही विराजमान थे सुदर्शन दिगम्बर देह में सुअवस्थित असीम ज्ञान के धारी उद्भट विद्वान श्री ऊर्जयंत सागर को देखकर राजकुमार गंगवाल ने श्रावक से क्षुल्लक बनने का उपाध्याय भगवत 108 श्री उर्जयन्त सागर जी महाराज से करबद्ध निवेदन किया। गुरुदेव ने संयम शब्द को प्रतिपादित करते हुए बताया मन को जीतने की दशा जब शुरू हो जाए उसे संयम कहते हैं। गुरुदेव उपदिष्ट रहे उन्होंने कहा भोगों से अरुचि हो जाना ही प्रतिमा धारण करना कहलाता है। और गुरु महाराज श्री उर्जयन्त सागर जी ने दीक्षार्थी महानुभाव की अनुनय- विनय को स्वीकार करते हुए दीक्षा संस्कारों से विधि विधान के अनुसार राज कुमार गंगवाल को श्रावक से उत्कृष्ट श्रावक बना दिया। पूज्य गुरु जी ने उन्हें राजकुमार से श्री उपहार सागर बना दिया। संयम पथ में सहायक उपकरण पिच्छिका कमंडल और शास्त्र तीनों ही वस्तुएं एक-एक करके क्षुल्लक जी महाराज को जन समुदाय द्वारा प्रदान की गई। पिच्छिका उपकरण विनोद कुमार काला परिवार गुवाहाटी द्वारा प्रदान की गई। कमंडल रमेश, दिनेश, मनोज सेठी परिवार दिन हट्टा द्वारा प्रदान किया गया। जिनवाणी भेंट गंगवाल परिवार धनबाद द्वारा की गई। सैकड़ो श्रावकों की उपस्थिति में अत्यंत सजग और शांत भाव से यह सभी उपकरण क्षुल्लक जी महाराज ने स्वीकार कर लिए। पिछिका से, उठने बैठने से पहले अच्छी तरह से देखभाल कर परिमार्जित कर लेना यही आदान निक्षेपण समिति कहलाती है, इससे जीव रक्षा भी होती है। चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामंत्री दौलत फागी वाला ने बताया दीक्षा संस्कारों के बाद जिनालय में कल्याण मंदिर विधान का आयोजन हुआ। विधान के पुण्यार्जक सुखानंद काला परिवार दुर्गापुरा जयपुर थे।

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