संतोष ऐसा वैभव जिसके समक्ष संसार के सारे एश्वर्य समाप्त हो जाते हैं
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। व्यक्ति को भगवान से मिलना है तो जीवन में भगवान के चार मुख्य पार्षद दया, शील, संतोष ओर सत्य है जिनसे पहले संपर्क करना होगा। उनमें पहला दया है। प्राणी मात्र पर दया का भाव, या जीव दया। मनुष्य जन्म में दयावान बन जाओगे तो स्वर्ग भी दूर नहीं है। दया मोक्ष मार्ग का प्रधान मार्ग है। शास्त्रों में दया धर्म का मूल स्थान भी है। हमे आत्म कल्याण करना है तो प्राणी मात्र के प्रति दया रखना चाहिए। ये विचार अन्तरराष्ट्रीय श्री रामस्नेही सम्प्रदाय शाहपुरा के अधीन शहर के माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा धाम में वरिष्ठ संत डॉ. पंडित रामस्वरूपजी शास्त्री (सोजत सिटी वाले) ने शनिवार को चातुर्मासिक सत्संग प्रवचनमाला के तहत व्यक्त किए। उन्होंने गर्ग संहिता के माध्यम से चर्चा करते हुए कहा कि दूसरा पार्षद है शील। शील शब्द बहुत बड़ा तप है ।शीलवान ,पुण्यशील कहीं तरह के श्रेष्ठ पुरुषों में इन शब्दों में उपमा दी जाती है जैसे त्यागी, तपस्वी, ब्रह्मचारी सब शील परंपरा है जो संयम जीवन जीते हैं। ऐसे व्यक्ति में भरपूर ऐश्वर्या ऊर्जा होती है, जो शील व्रत का पालन करते हैं। शास्त्रीजी ने कहा कि तीसरा पार्षद संतोष है। यह एक ऐसा वैभव है जिसके समक्ष संसार के सारे एश्वर्य समाप्त हो जाते हैं। संतोष को आत्मा का अनंत धन परम निधान माना गया है जहां मन की भूख समाप्त हो जाती है। उन्होंने कहा कि चौथा पार्षद सत्य है। सत्य एक ऐसा शब्द है जिसमे ब्रह्म शक्ति और जगत मिथ्या तक आ जाता है, इसके आगे कोई वस्तु नहीं रह जाती है। सत्संग के दौरान मंच पर रामस्नेही संत श्री बोलतारामजी एवं संत चेतरामजी का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन भक्ति से ओतप्रोत विभिन्न आयोजन हो रहे है। भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालु सत्संग-प्रवचन श्रवण के लिए पहुंच रहे है। प्रतिदिन सुबह 9 से 10.15 बजे तक संतो के प्रवचन व राम नाम उच्चारण हो रहा है। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रातः 5 से 6.15 बजे तक राम ध्वनि, सुबह 8 से 9 बजे तक वाणीजी पाठ, शाम को सूर्यास्त के समय संध्या आरती का आयोजन हो रहा है।