Monday, November 11, 2024

क्यों होता है पार्श्वनाथ के ऊपर फण धारी सर्प

उपसर्ग विजेता - पार्श्वनाथ के ऊपर फण धारी सर्प उपसर्ग का प्रतीक

जिन मंदिरों में भगवान पार्श्वनाथ के जिन बिम्ब के ऊपर प्राय: फण फैलाया हुआ सर्प दृष्टिगोचर होता है, जो उनपर हुए घोर उपसर्ग का प्रतीक है।
जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर में से वर्तमान काल में घोर उपसर्ग को सहन करने वाले तेइसवें तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ स्वामि कहे गये है । वर्तमान काल में सबसे अधिक जिनबिम्ब तथा जिन मन्दिर भगवान पार्श्वनाथ के दिखाई देते हैं। पार्श्वनाथ भगवान को संकट मोचक पार्श्व भी कहा जाता है ।
🍁कमठ और मरुभूति
भगवान पार्श्वनाथ पर कमठ नामक जीव द्वारा घोर उपसर्ग किए जाने बाबत शास्त्रों में लिखा है । राजा अरविन्द के दो मंत्री कमठ और मरुभूति थे। कमठ बड़ा भाई अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का, दुव्र्यवहारी था, जबकि छोटा भाई मरुभूति सज्जन और सद्व्यवहारी था। एक दिन मरुभूति को राज्य कार्य से नगर से बाहर जाना पढ़ा तब कमठ ने छोटे भाई की पत्नी के साथ दुव्यवहार करना चाहा। जब राजा को यह बात ज्ञात हुई तो उसने कमठ को देश निकाला दे दिया, अत: वह तापसी बनकर जंगल में रहने लगा और कुतप करने लगा, मरुभूति के लौट आने पर, सब घटना ज्ञात होने पर भातृ-प्रेम के कारण वह कमठ के पास गया और पैर पड़ते हुए क्षमा-याचना पूर्वक घर चलने की प्रार्थना करने लगा। तब कमठ ने और अत्यधिक क्रोधित हो उस पर शिला पटक दी, जिससे मरुभूति दुध्यान पूर्वक मरण कर कई भव से गुज़रने के उपरांत सोलहकारण भावनाओं का चिंतन कर तीर्थकर प्रकृति का बंध किया। तब सिंह के द्वारा भक्षण किये जाने पर समाधि पूर्वक मरण कर आनत स्वर्ग में इन्द्र हुआ ।
🍁तीर्थंकर का जीव
जम्बूद्वीप भरत क्षेत्र के काशी देश स्थित वाराणसी नगरी में राजा अश्वसेन राज्य करते थे उनकी महारानी वामादेवी ने आनत स्वर्ग के इन्द्र को आज से क़रीब तीन हज़ार वर्ष पूर्व पौष कृष्णा एकादशी को तीर्थकर सुत के रूप में जन्म दिया। और यह जीव स्वर्ग से च्युत हो, श्री पार्श्वनाथ तीर्थकर बना।और उधर कमठ का जीव आगे चलकर शम्बर नामक देव बना ।
🍁धरणेन्द्र पद्मावती
इधर सोलह वर्ष की अवस्था में बालक पार्श्व नगर के बाहर वन बिहार करते हुए अपने नाना महीपाल के पास पहुँचे। वहाँ पंचाग्नि नामक साधु तप के लिए लकड़ी फाड़ रहा था, इन्होंने उसे रोका और बताया कि लकड़ी में नागयुगल है। वह नहीं माना और क्रोध से युक्त होकर उसने वह लकड़ी काट डाली। उसमें जो नागयुगल था वह कट गया। मरणासन्न सर्पयुगल को इन्होंने संबोधित किया जिससे शान्तचित हो नाग युगल अगले भव में धरणेन्द्र और पद्मावती हुए।
🍁तीर्थंकर पर उपसर्ग
इधर जब  पार्श्व प्रभु तेला का नियम लेकर देवदारु वृक्ष के नीचे ध्यानावस्था में थे तब पूर्व जन्म के वैमनस्य भाव लिए कमठ के जीव शम्बर नामक देव ने सात दिन तक इन पर विभिन्न प्रकार के घोर उपसर्ग किये । उसी समय उस नाग युगल के जीव धरणेन्द्र और पदमावती ने आकर अपने पर किए उपकार स्वरूप पार्श्व नाथ के उपसर्ग का निवारण किया। इसी कारण भगवान पार्श्व का प्रतीक चिन्ह सर्प है तथा जिन बिम्ब के ऊपर फण फैलाया हुआ नाग दृष्टिगोचर होता है।
🍁निर्वाण
इसके बाद चैत्र कृष्णा त्रयोदशी के दिन प्रात:काल घातिया कर्म नष्ट हो जाने से प्रभु को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ तथा श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन प्रात: बेला में अष्टकर्मों को नाश कर स्वर्ण भद्र कूट सम्मेद शिखर से निर्वाण को प्राप्त किया जहां मोक्ष कल्याण के दिन लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुँचते है ।
पदम जैन बिलाला
अध्यक्ष
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर
जनकपुरी – ज्योतिनगर, जयपुर

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