ज्ञानतीर्थ पर बताया तीर्थ बंदना का महत्व
मनोज नायक/मुरेना। भारतीय संस्कृति में तीर्थ यात्रा का विशेष महत्व है । तीर्थ क्षेत्रों की वंदना व दर्शन करने से पुण्य का आश्रव व पापों का क्षय होता है। तीर्थ क्षेत्रों का कण कण पवित्र होता है । तीर्थ क्षेत्रों पर जाने से, वहां की बंदना, दर्शन, पूजन करने से आत्म शांति मिलती है, मन के विकार दूर होते हैं, मन निर्मल होता है। उक्त विचार सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ने ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर में श्री जिनेन्द्र प्रभु अभिषेक,एवम शांतिधारा के अवसर पर व्यक्त किए। जैन दर्शन में सिद्ध भूमि की वंदना विशेष फलदाई होती है। जहां से मुनिराज अष्ट कर्मों को नष्ट कर सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं। ऊर्ध्व लोक (सिद्धालय) में उनका वहीं स्थान होता है और उस क्षेत्र पर उनकी पुण्य वर्गणाए विद्यमान रहती हैं । जैन आगम के अनुसार तीर्थंकर भगवन्तो की जन्म स्थली अयोध्या जी व तीर्थंकर भगवन्तों की निर्वाण स्थली सम्मेद शिखर जी दोनों को ही शाश्वत तीर्थ माना गया है । हर चतुर्थ काल में तीर्थंकर अयोध्या जी में ही जन्म लेते हैं और सम्मेद शिखरजी से निर्वाण को प्राप्त होते हैं। वर्तमान हुण्डासर्पिणी काल के प्रभाव से वर्तमान चौबीसी के कुछ तीर्थंकरों ने अन्य स्थानों से जन्म लिया और अन्य स्थानों से निर्वाण को प्राप्त हुए। शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी से तो अनंत तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं एवं अनन्तानंत मुनियों ने सिद्ध पद प्राप्त किया है। इस कारण सम्मेद शिखरजी का तो कण-कण पवित्र है। हमें जीवन में कम से कम एक बार तो इस शाश्वत तीर्थ की वंदना अवश्य करना चाहिए। किसी ने कहा है कि “भाव सहित वन्दे जो कोई, ताहि नरक पशु गति ना होई”। अतः हमें जब भी शाश्वत तीर्थ सम्मेद शिखर जी की यात्रा करने का अवसर मिले तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए। जैन कुल में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कम से कम एकबार श्री सम्मेद शिखर जी की बंदना अवश्य करना चाहिए।