आँतों की गतिशीलता का सम्बंध हमारे स्वास्थ्य से है। आँतो की गतिशीलता जीव की प्राणशक्ति के सम्यक संतुलन पर निर्भर करता है। शरीर के भीतर प्राण विचरण करता रहता है और आयुर्वेद के अनुसार इस प्राण की शरीर में अलग अलग स्थान की स्थिति के अनुसार अलग अलग नाम है जैसे प्राण, उदान, व्यान, समान, अपान।
यद्यपि आँतो की गतिशीलता को औषधीय उपायों से बढ़ाया जा सकता है परन्तु यह निर्दोष व निरापद नहीं है। आँतों की गतिशीलता के अभाव में कब्ज और अन्य नाना व्याधियाँ होती हैं। कब्ज दूर करने के लिए प्रयोग की जाने वाली औषधि दो प्रकार के कार्य करती है—
मल को आगे की ओर धकेलती है, अथवा/और
मल को ढीला करती है।
कृत्रिम रीति से आँतों की बढ़ायी गयी इस तरह की क्रियाशीलता आँतों की नैसर्गिक कार्यक्षमता को प्रभावित करती है और कालांतर में इन औषधियों का व्यक्ति व्यसनी हो जाता है।
आँतों की क्रियाशीलता बढाने के निम्न उपाय निर्दोष व कारगर हैं—
प्रातःकाल उठकर भ्रमण करें एवं प्राणायाम करें,
आँतों को मजबूती प्रदान करने वाले योगासन करें,
स्नान के बाद ही भोजन करें,
निरामिष भोजन नियत समय पर करें,
चिंता और तनाव से बचें और नित्य ध्यान करें,
लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का प्रयोग करें,
कार्यस्थल पर एक ही जगह पर लगातार नहीं बैठें,
रोग निवारण हेतु अल्प समय के लिए अरंडी का तैल (कॉस्टर ऑइल) का प्रयोग कर सकते हैं। दवाएं सदैव योग्य चिकित्सक की देखरेख में लीजिए।
इसबगोल की भूसी का प्रयोग निर्दोष और निरापद(safe) है। इस को चार पाँच घंटे तक के लिए पानी में भिगो कर रख दीजिए। हल्का खाना खाने के बाद रात को सोते समय इसबगोल की भूसी का प्रयोग कीजिए। कब्ज से राहत मिलेगी। यदि इसके प्रयोग से पर्याप्त लाभ नहीं मिलता है तो इसकी मात्रा में बदलाव कर परीक्षण करें। यह किसी प्रकार का नुकसान नहीं करता है।
शुद्ध जल का प्रयोग करें। जले सर्व भेषजं। जल में सभी औषधियां विद्यमान होती है। तात्पर्य यह है कि जल का उचित मात्रा में उचित समय पर प्रयोग करने पर जल औषधि का कार्य करता है। प्रातः काल उठते ही एक या दो गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए परंतु दिन में अनावश्यक रूप से पानी बिना प्यास के नहीं पीना चाहिए। खाने के बाद तो पानी बिल्कुल नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे जठराग्नि मंद हो जाती है।
आँतो की अशुद्धि के शुद्धिकरण डिटॉक्सीफिकेशन के लिए प्रतिदिन के गरिष्ठ भोजन को कुछ दिन के लिए त्याग दें और संतरे के जूस का अधिकाधिक प्रयोग उस अवधि में करें। आँतों की दुर्बलता होने पर भोजन का पाचन नहीं होता और पेट में आंव हो जाता है। इन सब से मुक्ति हेतु संतरे का जूस लाभदायक है।
रात्रि को भोजन करने के पश्चात अवश्य टहलना चाहिए।
रात में निश्चित समय पर सोने की आदत डालें।
धन्यवाद।
डाॅ. पीयूष त्रिवेदी, एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ