Sunday, November 24, 2024

अपने से लड़ो, अपनों से नहीं: आर्यिकाश्री विज्ञाश्री माताजी

गुंशी, निवाई। प.पू. भारत गौरव आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ के पावन सान्निध्य में श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ, गुन्सी तह. निवाई जिला – टोंक (राज.) में आज की शांतिधारा करने का सौभाग्य प्रेमचन्द टोडारायसिंह रिखबचंद गायत्री नगर जयपुर एवं राकेश पुरुलिया वालों ने प्राप्त किया। मालवीय नगर से. 7 जयपुर की समाज ने मिलकर गुरु माँ की आहारचर्या निरन्तराय पूर्वक सम्पन्न करने का सौभाग्य प्राप्त किया। पूज्य माताजी ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जाति की कीमत धन दौलत, साधनों, परिवार, पुद्गल पदार्थ व पैसे से नहीं बल्कि साधना से है। विज्ञान ने हमें साधन दे दिए लेकिन साधना छुड़ा ली। माताजी ने कहा कि जिस प्रकार छाता बारिश हो नहीं रोकता लेकिन बरसात में चलने का हौसला बढ़ाता है उसी प्रकार मानव भी कर्मों को रोक नहीं सकता लेकिन पुण्य के उदय में कर्म को सहन करने की ताकत आ जाती है। पुरुषार्थ करने वालों की कभी हार नहीं होती। यदि आप वीर हो तो कषाय व कर्मों से लड़ना सीखो परिवार और पड़ोसी से नहीं। कर्मों से लड़कर केवलज्ञान प्राप्त करो। संतों की संगति से करोड़ भव का पाप कटता है। जैसे हाथी के पैर पड़ने से टमाटर चकनाचूर हो जाता है वैसे ही संतो के वचनों के द्वारा हमारे पाप कर्म चकनाचूर हो जाते हैं।

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