आगरा। पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि गुरु जब हमें पापी शब्द बोले तो उन्होंने हमें 40 गुना अच्छा बनाने के लिए यह शब्द कहा है, और अपना सौभाग्य समझे कि गुरु ने हमें पापी कहा है । इस पर उन्होंने विशेष प्रकाश डाला और कहा कि गुरुजी पापी कह रहे हैं तो गुरु के पापी कहने पर लोग गुरु की गुरुता पर सवाल उठाते है। एक उदाहरण के माध्यम से महाराज श्री ने समझाया की एक माता अपने बेटे को रोटी नही खिलाती है,बेटा कहता है माता मुझे दुखी करने के लिए रोटी नहीं दी। जबकी माता ने उसे बेटा सुखी रहे इसके लिए रोटी नहीं दी,ऐसा ही किसान अच्छे बीज को खेत में डालते है वहां खाद जो गन्दी होती हैं उसमे बीज जब डालते हैं तब अच्छी फसल लहराती हैं। ऐसे ही गुरु जब पापी शब्द बोलते तो गुरू हमे 40 गुना अच्छा बनाने के लिए है पापी बोला सौभाग्य समझे गुरु ने पापी कहा। उन्होंने अभाव में सद्भाव रखने की बात कही और कहा -सकारात्मक सोच है तो हम जीवित रहगें अभाव मे सद्भाव की अनुभूति होना, प्रतिकूलता मे सद्भाव, और नाग में हार कर दे हमारे में ऐसी शक्ति हैं। सीता जी का उदाहरण देते हुए कहा कि सीताजी आग में कुदी आग की लपटों से शरीर जल गया। उन्होंने कहा अग्नि कभी शीतल नहीं हो सकती है। भगवान, गुरु भी अग्नि को शीतल नही कर सकती है। स्वयं की शक्ति ही अग्नि को नीर कर सकती है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी