ढाई अक्षर पढ़ कर जीवन में उतार ले तो जिंदगी सार्थक: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। बच्चें मन के सच्चे होते है उन्हें कभी झूठ बोलना मत सिखाओ। हमे झूठ बोलता देख वह भी भविष्य में ऐसा करने लगेगे ओर हमे ही उपदेश देंगे। राजा हरीशचन्द्र जैसे महापुरूषों को सत्य के प्रति निष्ठा के कारण आज भी याद किया जाता है। सत्य की राह कठिन हो सकती लेकिन हार कभी नहीं होती। सत्य की कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाला का ही जग में नाम होता है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में गुरूवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बच्चों में त्याग की प्रवृति का विकास करें। जहां त्याग वहां सुख ओर जहां भोग होता है वहां दुःख होता है। अहिंसा हमारा मार्ग है ओर जीवन से मुक्ति भी अहिंसा की राह पर चलकर ही मिल सकती है। साध्वीश्री ने कहा कि जीवन में उच्च विचारों के साथ आत्मा को निखारने वाला ही श्रेष्ठ होता है। हमारे कर्म ऐसे हो जो हमारी आत्मा के कल्याण में सहायक हो। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह मारूत, रावण व वसु एक साथ पढ़ाई करते है। रावण के समय ही हिंसक प्रवृतियां शुरू होती है जो दुनिया में आज तक चल रही है। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि जीवन में त्याग, भाग्य, व्रत, प्रेम, कर्म, धर्म जैसे ढाई अक्षर ही सबसे महत्वपूर्ण होते है। जो इन ढाई अक्षर को पढ़ कर समझ ले ओर अपने जीवन में उतार ले वह पंडित बन जाता है। उसका जीवन सफल हो जाता है। हम जीवन का अंतिम लक्ष्य प्राप्त करना चाहते है तो हर इंसान से प्रेम करना सीखना होगा। उन्होंने कहा कि हम ढाई अक्षर समझ उसी अनुरूप आचरण करें तो जीवन सफल हो सकता है। दुनिया में सबसे सुखी इंसान वहीं है जिसे सोते ही नींद आ जाए। साध्वीश्री ने कहा कि सत्य सहजता से बोला जा सकता है पर झूठ बोलते समय इंसान को हमेशा भय रहता है कि कहीं कुछ गलत बात मुंह से निकल जाए या पोल न खुल जाए। झूठ छोड़ने पर कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन सच का त्याग कर दिया तो जीवन में दुःख आएंगे। उन्होंने कहा कि जीवन में हमेशा अच्छे कर्म करते रहो तो उनका फल अवश्य प्राप्त होगा।
श्रावक करें अपरिग्रह व्रत को अंगीकार
धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाकसूत्र का वाचन करते हुए श्रावक के 12 व्रतों में से पांचवे व्रत अपरिग्रह की चर्चा करते हुए समझाया कि किस तरह इस व्रत की पालना एक श्रावक सहजता से कर सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे जितनी जरूरत है उतनी वस्तुओं का आगार रख शेष का त्याग करने का व्रत लेना चाहिए। भौतिक वस्तुएं हो या खाद्य सामग्री किसी का भी हमे आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम चाहे अधिक वस्तुओं का उपभोग नहीं कर रहे लेकिन अपरिग्रह का व्रत नहीं ले रखा तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। व्रत अंगीकार कर व्रति श्रावक बनना चाहिए। धर्मसभा में आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने भजन की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है।
बच्चों को प्रेरित करें द्रव्य मर्यादा रखने के लिए
महासाध्वी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने बताया कि चातुर्मास में रविवार से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए 15 दिवसीय द्रव्य मर्यादा तप (चन्द्रकला तप) शुरू करने की भावना है। ये ऐसी तप साधना होगी जो बच्चें स्कूल-कॉलेज जाते भी आसानी कर सकेंगे। इस साधना के तहत बच्चों के लिए द्रव्य मात्रा निर्धारित होगी यानि वह एक दिन में उस तय द्रव्य मात्रा से अधिक द्रव्यों का उपयोग नहीं कर सकेंगे। दैनिक दिनचर्या में जरूरी चार चीजों पानी पेस्ट, दूध व दवा की छूट (आगार) रहेगी। तप के तहत पहले दिन अधिकतम 15 द्रव्य उपयोग में लेे सकेंगे। इसी तरह 31 जुलाई को अधिकतम 14 द्रव्य एवं निरन्तर घटते क्रम में तप साधना के अंतिम दिन 13 अगस्त को एक द्रव्य का ही उपयोग कर सकेंगे। जो भी बच्चें द्रव्य मर्यादा तप से जुड़ना चाहे उनके नाम साध्वीवृन्द या चातुर्मास आयोजक श्री अरिहन्त विकास समिति के पदाधिकारियों को लिखवाने होंगे। समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है।