भगवान की भक्ति कभी खाली नहीं जाती है अवश्य मिलता है उसका फल
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायी है। भगवान के नाम के स्मरण मात्र से सारे कष्ट दूर हो जाते है। पार्श्वनाथ प्रभु की सच्चे मन से भक्ति करने वालों के जीवन में सुख शांति व समृद्धि का वास रहता है। कलयुग में जप-तप ही है जो हमारे जीवन को निर्मल व सार्थक बना सकते है। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में बुधवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मोक्ष (निर्वाण) कल्याणक दिवस के अवसर पर नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने पार्श्वनाथ प्रभु की स्मृति में कराए गए जाप की चर्चा करते हुए कहा कि जाप का फल अवश्य प्राप्त होता है। उन्होंने पार्श्वप्रभु के जीवन चरित्र की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह पार्श्वकुमार एक लकड़े में जल रहे सर्प-सर्पिनी के जोड़े को बाहर निकालते है ओर वेदना के समय में उनको महामंत्र नवकार सुनाते है। इससे उनको आत्मिक शांति मिलती है ओर मर कर देव धनेन्द्र व देवी पद्मावति बनते है। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए बताया कि किस तरह दशरथ जब डेढ़ माह के थे तभी उनके पिता दीक्षा ग्रहण कर लेते है ओर दशरथ का राज्याभिषेक हो जाता है। नारद रावण के पास लहूलुहान हालत में आता है तो रावण उसका कारण पूछता है। धर्मसभा में तत्वचिंतिका डॉ.समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि भगवान की भक्ति कभी खाली नहीं जाती है उसका फल जीवन में हमे अवश्य प्राप्त होता है। उन्होंने सुखविपाकसूत्र का वाचन करते हुए श्रावक के 12 व्रतों में से चौथे व्रत ब्रह्मचर्य एवं पांचवे व्रत अपरिग्रह की चर्चा करते हुए समझाया कि किस तरह के नियमों की पालना करके हम इन व्रतों को अपने जीवन में अंगीकार कर सकते है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन ही ऐसा अवसर है जब हम अपने कर्म बंध काट कर मुक्ति को प्राप्त कर सकते है। अन्य किसी भव में ये अवसर नहीं मिलता है। बिना मर्यादा अंगीकार किए हमे उसका फल प्राप्त नहीं हो सकता है। साध्वीश्री ने अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह से बचने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जब आवश्यकता पर इच्छा हावी हो जाती है तो परिग्रह बढ़ता है। धर्मसभा में नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. ने प्रभु पार्श्वनाथ की स्मृति में भजन ‘मेरे मन में पार्श्वनाथ, मेरे तन में पार्श्वनाथ,रोम रोम में समाया पार्श्वनाथ रे’ की भावपूर्ण प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका बड़ी संख्या में मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है।
सर्वसुखदायी एवं कल्याणकारी ‘उवसग्गहरं’ मंत्र का जाप
तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मोक्ष (निर्वाण) कल्याणक दिवस के उपलक्ष्य में धर्मसभा के शुरू में पार्श्व प्रभु की स्तुति स्वरूप सुबह 8.45 से 9.15 बजे तक सर्वसुखदायी एवं कल्याणकारी ‘उवसग्गहरं’ मंत्र का जाप कराया गया। जाप साधना मधुर व्याख्यानी दर्शनप्रभाजी म.सा. एवं तत्वचिंतिका समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कराई। निर्वाण कल्याणक दिवस अष्टमी होने से कई श्रावक-श्राविकाओं ने संवर आराधना भी की है। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है।