अनेक महापुरुषों पर संकट आये हैं। भगवान आदिनाथ को भी अशुभ कर्मों ने नहीं छोड़ा और 6 महीने तक आहार की विधि नहीं मिली। अभी कुछ समय पहले ही दिगम्बर साधु समुदाय पर सरकार की ओर से मयूर पंख पर प्रतिबन्ध लगाने की बात को लेकर समाज में चिंता व्याप्त हो गई थी, क्योंकि आदिकाल से दिगम्बर साधु की मुद्रा मयूर पिच्छि एवं कमण्डलु ही है। जब 2 मई, 2010 में दिगम्बर जैन साधुओं पर संकट आया। सरकार ने मयूर पंख पर प्रतिबन्ध लगाने का अध्यादेश प्रसारित किया, जिस कारण जैन समाज में हड़कम्प मच गया, क्योंकि मयूर पिच्छि तो जैन साधुओं का प्रतीक चिह्न है। ध्यातव्य है कि आचार्यश्री ने मयूर पंखों के प्रतिबंध वाले अध्यादेश के विरोध में भारत सरकार के तत्कालीन प्रधान मंत्री तथा सम्बन्धित मन्त्रियों को पत्र लिखवा कर और पत्रों के साथ आगमों के अनेक प्रमाण, पुरातत्त्वों से प्राप्त अनेक चित्र आदि प्रामाणिक सामग्री भेजकर यह सिद्ध किया कि यह मयूर पंख धार्मिक चिह्न के रूप में मान्य हैं। अतः इस पर से प्रतिबंध हटाना ही उपयुक्त है। यद्यपि कीसी भी धार्मिक चिह्न पर प्रतिबन्ध लगाना असंवैधानिक है। सरकार ने इसको स्वीकार किया और प्रतिबंध वापस ले लिया। मयूर पंख पर प्रतिबंध की सूचना विदेशों में रहने वाले जैन भक्तों को भी मिली, उन्होंने तत्काल वहाँ से श्वेत मयूर पंख भारत भिजवाये और उनसे निर्मित एक श्वेतपिच्छी तैयार की गई। उनको श्वेत पिच्छी भेंट की गई और पूज्य उपाध्याय श्री प्रज्ञसागर जी ने कहा कि अब आचार्यश्री जी का नाम श्वेतपिच्छाचार्य होगा। उपस्थित समुदाय ने उसकी अनुमोदना करते हुए श्वेतपिच्छाचार्य के अलंकरण के साथ जयघोष का उच्चारण किया। अब से आचार्यश्री जी का विरूद हुआ श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानन्द मुनिराज।
पदम जैन बिलाला
अध्यक्ष
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर
जनकपुरी – ज्योतिनगर जयपुर