Saturday, September 21, 2024

सत्ता का ख्वाब

सत्ता में वापस से आने का ख्वाब,
उस मगरूर नशे में चूर,
राजा के सीने में कुछ
इस तरह से पल रहा था
वो सिंहासन बैठा हट्टाहास कर रहा था
वो जल रहा था या जलवाया जा रहा था
इधर उधर की बातों से भोली भाली जनता
का मन बहलाया जा रहा था ।
मुफ्त वाली रेवड़ियों का थेला
हर किसी के हाथों पकड़ाया जा रहा था।
सत्ता के गलियारों में वापस
आने की खातिर
मसला कुछ इस तरह से
सुलझाया जा रहा था।
भाइयों को भाइयों से आपस में
लड़वाया जा रहा था।
मानवीयता भी अब यहां शर्मसार थी।
यह उसकी जीत के बाद
की सबसे बड़ी हार थी।
अमृत काल में यह कैसी
जहर भरी बौछार थी।
बेआबरू हो चुके थे जो पहले ही ,
उनकी जुबान लाचार थी।
इंसानियत भी अव यहां तार तार थी।
मेरी कलम भी अब रो रही थी ।
शायद लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी हार थी।
मां भारती की आंखे भी जार जार थी।
डॉ. कांता मीना
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार

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