संतानों के साथ संत-साध्वियों के प्रति भी अपना दायित्व नहीं भूले: दर्शनप्रभाजी म.सा.
सुनील पाटनी/भीलवाड़ा। संत-साध्वी हमारे धर्म के रक्षक ओर समाज की धरोहर है। उनकी रक्षा तो हमे करनी होगी। इस तरह हत्या और दुर्घटना का शिकार होते रहे ओर हम चुप रहे तो क्या संदेश जाएगा। समाज को संदेश देना है हम अहिंसक है लेकिन कायर नहीं है। दिगम्बर जैन संत कामकुमार नंदी की निर्ममता से की गई हत्या स्तब्ध करने वाली है ओर समाज को एकजुट होकर इसका विरोध करना ही चाहिए। ये विचार शहर के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित स्थानक रूप रजत विहार में गुरूवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यदि हम साधु-संतों की रक्षा नहीं कर पाए तो समाज कैसे बचेगा ओर उसे मार्गदर्शन कौन प्रदान करेगा। साध्वीश्री ने जैन रामायण का वाचन करते हुए बताया कि बालि ने किष्किन्धा का राज्य अपने भाई सुग्रीव को सौंप दीक्षा अंगीकार कर ली। बालि धन्य है जिसने राज्य त्याग संयम जीवन स्वीकारा। जितना तन को तपाते है उतनी ही लब्धिया मिलती है। बालि संयम लेकर आत्मशोधन में लग गया। बालि मुनि को केवल ज्ञान की प्राप्ति भी हो गई। बालि ने ही रावण को काख में दबाकर धूमने के बाद उसे छोेड़ते हुए रावण नाम दिया था। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि संत-साध्वियों के कारण ही यह धरती सुरक्षित है। धरती की धरोहर धर्म का मार्ग दिखाने वाले संत-साध्वी है। समाज का कर्तव्य बन जाता है कि जब भी संत-साध्वियों की सुरक्षा पर खतरा आए पुरजोर तरीके से अपनी आवाज उठाए। हमारा जितना दायित्व अपनी संतानों के प्रति है उतना ही दायित्व संत-साध्वियों की सुरक्षा व देखभाल के प्रति भी है। संतों की संख्या में आ रही गिरावट समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए और संत-साध्वियों को पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए।
जिस समाज में शकुनि बैठा हो वह सुरक्षित नहीं
साध्वी दर्शनप्रभाजी ने कहा कि कुछ लोग अंदर से कड़क बाहर से नरम होते है, कुछ लोग अंदर से नरम ओर बाहर से भी नरम होते है लेकिन शकुनि अंदर से भी खराब ओर बाहर से भी खराब था। जिस समाज में शकुनि बैठा हो वह सुरक्षित नहीं है। कभी भी पाप करने से पहले परिणाम सोच ले तो पाप की तरफ कदम बढ़ेंगे ही नहीं। तन को तराशने की जगह तप कर तपाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि तन को तपाए बिना आत्मा कुंदन नहीं हो सकती। तन को तपाने के लिए रसेन्द्रिय पर नियंत्रण जरूरी है इसके बिना तपस्या नहंी हो सकती। आजकल तन से अधिक मन की बीमारी है। तन की बीमारी का उपचार तो डॉक्टर कर देता है पर मन की बीमारी का उपचार माता-पिता व गुरू ही कर सकते है। शुरू में नवदीक्षिता हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन ‘मुश्किल में है काया, ये जीवन है अनमोल’ की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगममर्मज्ञ चेतनाश्रीजी म.सा., तत्वचिंतिका समीक्षाप्रभाजी म.सा. आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में शहर के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावक-श्राविका मौजूद थे। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री सुरेन्द्र चौरड़िया ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक होंगे।
रविवार को मनाया जाएगा सास-बहू दिवस
महासाध्वी दर्शनप्रभाजी म.सा. ने बताया कि आगामी रविवार 23 जुलाई को रूप रजत विहार में नियमित प्रवचन के दौरान सास-बहु दिवस मनाया जाएगा। इसके माध्यम से सबसे अधिक समय साथ बीताने वाली सास-बहु में किस तरह आपसी समन्वय बढ़ सकता, उनके क्या कर्तव्य है और एक-दूसरे को सुख-दुःख में संभाल किस तरह घर को टूटने से बचाया जा सकता इस बारे में प्रेरणा प्रदान की जाएगी। उन्होंने बताया कि इस आयोजन के लिए सास को पीली एवं बहु को लाल रंग की साड़ी पहनकर आना होगा। अधिकाधिक सास-बहु प्रेरणादायी इस आयोजन से जुड़े इसके लिए सभी को प्रयास करने चाहिए। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा के अनुसार चातुर्मास के तहत प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना का आयोजन हो रहा है। प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र जाप एवं दोपहर 3 से 4 बजे तक साध्वीवृन्द के सानिध्य में धार्मिक चर्चा हो रही है।