मथुरा। वीर निर्माण संवत् 2549, प्रथम श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि और शनिवार का दिवस। सूरज और बादल की अठखेलियों ने उमस को बढ़ा रखा था लेकिन ब्रज की गोद में बसे सिद्ध क्षेत्र मथुरा 84 और श्रमण ज्ञान भारती छात्रावास में अलग ही गर्मजोशी का माहौल था। वजह थी श्रमण ज्ञान भारती के 23वें स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित पूर्व स्नातक छात्रों का अधिवेशन। संस्थान की स्थापना के दो दशकों से ज़्यादा का समय बीत जाने के बाद ऐसा पहला अवसर था जब सभी पूर्व छात्र एक समावेशन कार्यक्रम का हिस्सा थे। दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत भगवान अजितनाथ के समक्ष प्रात: कालीन अभिषेक, शांति धारा और संगीतमय पूजन के साथ हुई। पूजन का माहौल इतना भक्तिमय और आनंदित था, कि न सिर्फ़ पूजा करने वाले पूर्व छात्र बल्कि मथुरा 84 प्रांगण में मौजूद एक एक श्रद्धालु अपने भक्ति के भावों को व्यक्त करने से ख़ुद को रोक नहीं सका। पूजन के पश्चात अधिवेशन के पहले सत्र की शुरुआत मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन और चित्र अनावरण के साथ हुई। वर्तमान- पूर्व शिक्षकों तथा अतिथियों के सम्मान के बाद संस्थान की रीढ़ कहे जाने वाले अधीक्षक श्री जिनेन्द्र शास्त्री जी ने कार्यक्रम की प्रस्तावना को गढ़ा। इस दौरान संस्थान के जनक और प्रेरणा बिंदु समाधिस्थ सराकोद्धारक आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज, स्व. श्री भूपेन्द्र जी बैनाड़ा, संस्थान के दिवंगत छात्रों तथा संस्थान से जुड़े अन्य स्मृति शेष व्यक्तियों को याद करते हुए विनयांजलि अर्पित की गई। सभागार के भावों में तब और गंभीरता का इज़ाफ़ा हुआ जब संस्थान के पदाधिकारियों गले छात्रावास से जुड़े अनुभवों को साझा करते हुए रूँध गए। पहले सत्र के समापन से पहले कार्यक्रम के संयोजक एवं पूर्व छात्र ललितांक जैन जी ने संस्थान के पूर्व छात्रों का परिचय सभी लोगों से करवाया तथा वर्तमान में उनके कार्य, पद और व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी साझा की। यह पड़ाव निजी तौर पर रोंगटे खड़े कर देने वाला रहा।
पहले दिन के दूसरे सत्र में अतिथियों के सत्कार के बाद पूर्व छात्रों ने अपने छात्रावास के प्रवास के अनुभवों को साझा किया साथ ही कार्यक्षेत्र अनुभवों, प्रशस्तियों, कठिनाइयों तथा आम जीवन शैली में श्रमण ज्ञान भारती के प्रभाव को दर्शाया। म्यूज़िकल तम्बोला प्रतियोगिता तथा शाम को संध्याकालीन आरती के साथ पहले दिन के औपचारिक कार्यक्रम का का समापन हुआ। लेकिन अनौपचारिक तौर पर संस्थान परिसर में आयोजित ओपन माइक कार्यक्रम मनोरंजन की शक्ल में जीवन से जुड़े कई गंभीर अनुभवों को सिखाने वाला रहा। जिसमें अग्रज भाई श्री सौरभ जैन विद्यायतन की आजीविका पालन से आत्म संतुष्टि की यात्रा तथा प्रथम बैच के अभिषेक जी टीकमगढ़ का कड़वे अंधेरों से उजालों तक के सफ़र का वक्तव्य उल्लेखनीय बिंदु रहा। गायन, वादन और नृत्य प्रस्तुतियों ने छात्रों को देर रात तक बांधे रखा। दूसरे और अंतिम दिन की शुरुआत विगत दिन की भाँति अभिषेक पूजन के साथ हुई लेकिन अंतिम अनुबद्ध केवली श्री जम्बू स्वामी भगवान और आचार्य श्री 108 विद्या सागर जी के पूजन के दौरान छात्रों की श्रद्धा ने एक और नए आयतन को छुआ और समस्त छात्रों के समूह का फ़ोटो सेशन आयोजित किया गया।
दूसरे दिवस के पहले सत्र में अतिथियों तथा छात्रावास के लिए समर्पित मथुरा जैन समाज के लोगों सम्मान किया गया। तत्पश्चात् संस्थान पूर्व अध्यक्ष राजेश भैया, प्राकृत भाषा के विद्वान पुलक भैया और कुछ अन्य पूर्व छात्रों ने अपने अनुभवों को साझा किया। अगला सत्र इस अधिवेशन के कई गौरवशाली क्षणों का साक्षी बना। सत्र की शुरुआत प्रेरणा स्त्रोत तथा अर्ह योग प्रणेता पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी के उद्बोधन के साथ हुआ। तत्पश्चात् संस्थान में अध्ययन कर चुके, आचार्य विभव सागर जी के संघ में सुशोभित श्रमण शुद्धोपयोग सागर जी तथा आचार्य श्री विद्यासागर से दीक्षित क्षुल्लक श्री अथाह सागर जी ने संस्थान के बारे में अपने वचनों को साझा किया। उद्बोधनों की श्रृंखला के बाद वो पल आया जिसका इंतज़ार श्रमण ज्ञान भारती से जुड़े तमाम छात्रों को बेसब्री से था। सत्र के इस भाग में संस्थान के अधिष्ठाता श्री निरंजन लाल जी बैनाड़ा छात्रों के बीच पधारे। उम्र के साथ चलने में असमर्थ गुरू जी को हर एक छात्र अपना सहारा देने और उनके चरणों का स्पर्श पाने के लिए लालायित था। छात्रों के लगाव को देखकर सदन में मौजूद हर एक नयन सजल महसूस होता था। मंच पर स्थान लेने के बाद निरंजन लाल जी ने छात्रों को अपने वचनों से अपना आशीष प्रदान किया। इस सत्र और संस्थान के लिए एक और गौरव का क्षण तब आया जब संस्थान के छात्र रहे कवि उत्कर्ष जैन की 100 कविताओं वाली माँ को समर्पित किताब “उस दिन माँ रो देती है” का विमोचन किया गया। विमोचन सत्र के बाद सम्मान समारोह सत्र की बारी आई। इस सिलसिले में आयोजन समिति के छात्रों और अग्रज बंधुओं ने समस्त ट्रस्टी और पदाधिकारियों का सम्मान किया। संस्थान के अधीक्षक और नींव के पत्थर जिनेन्द्र शास्त्री जी के सम्मान में छात्रों ने उन्हें गोद में उठाकर अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया। छात्रावास के छात्र संघ के सम्मान के बाद आयोजन समिति के सदस्यों का प्रशस्ति पत्र देकर सम्मान और आभार व्यक्त किया गया। तत्पश्चात् कनिष्ठ छात्रों ने वरीयता के हिसाब से वरिष्ठ छात्रों का सम्मान किया। अंत में प्रत्येक इसी तरह अधिवेशन को सफल और छात्रावास को सतत बनाए रखने के संकल्प के साथ दो दिवसीय वार्षिकोत्सव तथा स्नातक अधिवेशन संपन्न हुआ।