सुनिल चपलोत/चैन्नई। मृत्यु को महोत्सव तभी बनाया जा सकता हैं। जब मनुष्य के मन के विकार दूर होगें। सोमवार को महासाध्वी धर्मप्रभा ने एस.एस. जैन भवन साहुकार पेठ में श्रावक -श्राविकाओं को धर्मसंदेश प्रदान करतें हुए कहा कि मनुष्य के सर पर मौत का साया मंडरा रहा हैं। फिर भी वह मन के विकारों को दूर नही करता हैं ।जबकि मनुष्य यह सब जानता हैं,कि उसके जीवन का प्रत्येक पल कम हो रहा हैं,और मृत्यु उसके समीप आने वाली हैं। फिर भी वह जान करके भी अंजान बन रहा है। आज तक इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान पैदा नहीं हुआ जिसे जन्म लेने के बाद मौत नही आई हो। इंसान के जन्म के वक्त से ही उसकी मृत्यु का समय निरर्धारित हो जाता हैं। किन्तु मौत का बुलावा कब आयेगा यह कोई नहीं बता सकता है। लेकिन मानव चाहें तो अपनी मृत्यु को महोत्सव बना सकता हैं। वह तभी संभव हो पाएगा जब व्यक्ति मन के विकारों और मोह का परित्याग कर लेगा। तभी मृत्यु के भय से छुटकारा पाकर मौत को महोत्सव में बदल सकता हैं। साध्वी स्नेहप्रभा ने उत्तराध्ययन सूत्र का वांचन करते हुए कहा कि संसार असार हैं। यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं है। इंसान मोह भरी नींद में जीवन व्यतीत कर रहा है। यदि मृत्यु का बुलावा आने से पहले व्यक्ति जग जाये तो ससार सें हंसते- हंसते विदा होकर मृत्यु को सहज और सरल बना सकता है। आंख बंद हो जाये और इच्छाएं शेष रह जाए वह मृत्यु है,और इच्छाए समाप्त हो जाए और जीवन शेष रह जाए वह मोक्ष हैं। जिसने परमात्मा के नाम का आसरा ले लिया समझ लो उस प्रांणी ने मौत को महोत्सव मे बदल दिया। इसदौरान धर्मसभा में तपस्वी बहन रेखा कोठारी अंतिमा कोठारी ने गुरूणीमय्या धर्मप्रभा जी म.सा से नो उपवास के प्रत्याख्यान लिए जिनका साहुकार पेठ संघ के अध्यक्ष एम अजितराज कोठारी,कार्याध्यक्ष महावीर चन्द सिसोदिया,एन राकेश कोठारी, सुरेश डूगरवाल, हस्तीमल खटोड़, महावीर कोठारी, बादल चन्द कोठारी,जितेन्द्र भंडारी,शांति लाल दरणा अशोक कांकरिया, शम्भूसिंह कावड़िया सुभाष काकलिया, आदि पदाधिकारियों और महिला मंडल की बहनों ने तपस्वी बहनों का चुंदड़ी माला मोमेंटो देकर स्वागत अभिनन्दन किया गया।