जयपुर। राजवंश की राजधानी रही आमेर नगरी में उपाध्याय भगवंत का चातुर्मास गतिमान है। आमेर नगर के सुरम्य वातावरण में पूज्य उपाध्याय भगवंत की पावन निश्रा में फागीवाला पार्श्वनाथ जिनालय में, राजस्थान जैन सभा एवं उपाध्याय उर्जयंत सागर चतुर्मास समिति के संयुक्त तत्वावधान में वीर शासन जयंती का कार्यक्रम आयोजित हुआ। तीर्थंकर देव का वंदन कर, प्रचार संयोजक रमेश गंगवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि समारोह के मुख्य अतिथि नरेश कुमार सेठी ने अपने उद्बोधन में पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा जयपुर में इन दिनों लगातार जिनालयों में चोरी हो रही है और हम लोग उसकी पूर्ण व्यवस्था सुरक्षा के दृष्टिकोण से नहीं कर पा रहे हैं। समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में पधारे डॉक्टर विमल कुमार जैन ने अपने उद्बोधन में कहा की समस्त फागीवाला वाला परिवार साधुवाद का पात्र है जिन्होंने आमेर की पहाड़ियों के मध्य पार्श्वनाथ प्रभु के जिनालय में उपाध्याय भगवंत का चातुर्मास संपन्न कराने का मन से निश्चय किया है। यह आमेर नगर में होने वाला प्रथम चातुर्मास है। तथा उन्होंने वीर शासन जयंती के महत्व को समझाया। चातुर्मास समिति के मुख्य सूत्रधार दौलत फागी वाला तथा समस्त फागीवाला परिवार ने राजस्थान जैन सभा के सभी पदाधिकारियों का तिलक माल्यार्पण कर सम्मान किया। चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य महावीर फागी वाला ने बताया धर्म सभा का संचालन मनीष वेद ने किया कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ताराचंद जैन, स्वीट कैटरर्स थे। विशिष्ट अतिथि रुपेन्द्र छाबड़ा थे। धर्म सभा में चित्र अनावरण नरेश कुमार सेठी, महेश काला राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारियों ने दीप प्रज्वलन कर किया।
चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक रुपेन्द्र छाबड़ा ने जानकारी देते हुए बताया उपाध्याय भगवंत ने वीर शासन जयंती के संदर्भित विषय में अपने मंगल प्रवचन में कहा भगवान की 12 सभाओं में संसार के प्राणी विराजमान थे। परंतु केवल ज्ञान होने के 66 दिन बीत जाने के पश्चात भी भगवान की वाणी नहीं खिरी। अन्य सभी तीर्थंकरों को केवल ज्ञान प्राप्त होते ही उनकी दिव्य ध्वनि खिर जाती थी ,परंतु महावीर स्वामी की दिव्य ध्वनि योग्य श्रोता न होने के कारण उपदेशित नहीं हुई । श्रावण कृष्णा प्रतिपदा को जब उनका विरोध करने वाले व्यक्ति ही उनकी धर्म सभा में आए और आते ही उन्होंने भगवान का शिष्यत्व ग्रहण किया, और प्रमुख श्रोता के रूप में विराजमान हुए। और तभी भगवान उपदिष्ट हो गए, और भगवान की दिव्य देशना हुई । यह देशना राजगृह नगर के विपुला चल पर्वत पर हुई सभी को भगवान की वाणी सुनने को मिली थी भगवान की वाणी को सुनना और उसे अपने जीवन में उतारना यह जीवन का ध्येय होना चाहिए । शासन शब्द का अर्थ व्यक्त करते हुए गुरुदेव ने कहा कि शासन प्रशासनिक व संविधान के रूपों में होता है। शासना के द्वारा बनाई गई एक व्यवस्था है। गुरुदेव उपदिष्ट रहे ,उन्होंने कहा केवल ज्ञान वह होता है जहां तीनों काल, लोक चरा चर दिखाई देते हैं। उन्होंने कहा महावीर जयंती को जयंती नहीं महावीर प्रभु का जन्म कल्याण के रूप में मनाना चाहिए और वीर शासन जयंती को जयंती के रूप में मनाया जाना चाहिए। 18500 वर्ष तक भगवान महावीर का शासन काल विद्यमान रहेगा। भगवान की वाणी अट्ठारह महा भाषा एवं 700 लघु भाषाओं में खिरती है। इसी दिवस को वीर शासन जयंती कहा गया है। इस अवसर पर राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष सुभाष पांड्या, कोषाध्यक्ष राकेश छाबड़ा, महामंत्री मनीष वेद, विनोद कोटखावदा आदि महानुभाव उपस्थित थे।