उच्च शिक्षा प्राप्त करने पहुँचने बाले छात्र छात्राओं से परिचय के नाम रैगिंग कार्य लगभग 50 वर्ष से अधिक समय से जारी है। नवागत छात्र छात्राओं से कॉलेज से सीनियरों द्वारा जो अमानवीय व्यवहार किया जाता है। शारीरिक एवं मानवीय यातनायें दी जाती है वह अनेक घटनाएँ दिल दहला देने बाली होती है। आजादी के बाद भारत में पिछले 60 वर्षों में रेगिंग के तरीकों में कमी आने के विपरीत ये और अधिक क्रूर होते जा रहे है। परिचय और कॉलेज के वातावरण के अनुरूप नवागत को पारंगत करने के नाम से प्रारभ हुई रैगिंग पहले पिटाई और मोटी यंत्रणाओं तक ही सीमित दायरे में थी। मगर पिछले लगभग 30-35 वर्ष में इसका स्वरूप वहुत अधिक क्रूर और अमानवीय हो गया है। विगत वर्ष कर्नाटक के गुलबर्गा जिले के कॉलेज आंफ नर्गिस में अध्ययन हेतु केरल के कोझिकोड जिले की दलित छात्रा अस्वथी केपी के साथ रैगिंग के नाम जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने बाली घटना है।
स्मरणीय है केरल की लड़कियां, अधिकांश नर्सिंग कोर्स की पढ़ाई करती है। छात्रा अस्वथी को उसकी 5 सीनियर्स ने फिनाइल जिससे टॉयलेट साफ किया जाता है उसे जबरन पीने मजबूर किया। लड़की एक बार तोजैसे तैसे बचकर निकल गई। दूसरी बार उसे इतना मजबूर किया कि फिनाइल पीना पड़ा। उक्त लड़की को केरल के कोझिकोड जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों का कहना था फिनाइल पीने से अस्वथी मात्र 19 वर्षीय दलित लड़की के आंतरिक अंग जल गये थे। केमिकल्स से उसकी आहार नली गंभीर रूप से क्षति ग्रस्त हो गई है। साथ ही केमिकल्स ने
उसके गले ओर पेट के बीच का हिस्सा जला दिया था। दलित लड़की को ठीक होने में लगभग 6 माह लगे। ऐसे मामलों में कहने को मरीज ठीक हो जाता है मगर उसके शरीर के अंग जीवन भर पूरी तरह काम नही कर पाते है। म. प्र. के उज्जैन निवासी पीड़ित दुखी पिता बताते है रैगिंग ने उनके इकलौते बेटे की जिन्दगी ही बर्वाद कर दी। उन्होंने अपने बेटे को लगभग 11 वर्ष पहले पूना के प्रसिद्ध मेनेजमेंट इन्स्टीट्यूट में एम बी ए में प्रवेश दिलाया था। मॉ एवं पिता दोनों खुशी खुशी बेटे को पूना छोड़ने गये थे। अचानक एक सप्ताह बाद ही बिना पूर्व सूचना दिये उनका बेटा वापस आया। बेटे ने बापस आकर बताया वह रैगिंग की वजह से मुझे कॉलेज एवं पूना छोड़ने मजबूर होना पड़ा। अब मर भी जाऊंगा मगर बापस उस कॉलेज में नही जाऊंगा।
कॉलेजों में रैगिंग की सीमा निर्धारित नही है। सीनियर छात्र अपने नवागत साथी छात्रों का स्वागत तरह तरह से प्रताड़ित करते है। सीनियर्स का यह तर्क रहता है जब हमने प्रवेश लिया था तब हमे भी इसी स्थिति से गुजरना पड़ा था। हम भी रैगिंग के दौर से गुजरे हैं यह स्थिति जूनियर्स की करके उन्हे पक्का कर रहे है। रैगिंग के नाम पर सीनियर्स द्वारा जूनियर्स से मनमानी धनराशि की मांग करने उनको वह राशि देने में जूनियर्स को ज्यादा परेशानी नही होती है। मगर रैगिंग के नाम पर शारीरिक और मानसिक दुख उन्हे लम्बे समय तक परेशान करता है। रैगिंग के नाम पर अपने जूनियर भाइयों को प्रताड़ित कर के दुनियादारी सिखाना कहां तक उचित है। हमारे ही एक अभिन्न मित्र का बेटा चेन्नई में मेनेजमेंट कोर्स की पढ़ाई करने कॉलेज में भर्ती हुआ। वहाँ उसकी जमकर पिटाई हुई। लड़के ने घवराकर कॉलेज हास्टल छोड़ कर धर्म शाला की शरण ली। कुछ दिन बाद माता पिता को पता चला तो वे वहाँ पहुचे। बेटा मां बाप को गले लगातार फूट फूट कर रोने लगा। उसने कहा कॉलेज में वहुत पिटाई होती है वह वहाँ नही रहना चाहता है। कुछ महिने बाद बेटे की स्थिति सामान्य होने पर उसने बताया वह वहाँ कुछ दिन और रहता तो धर्मशाला में ही आत्महत्या कर लेता। रैगिंग के मामलों में लड़कों से ज्यादा ध्यान लड़कियों का रखने की आवश्यकता लड़कियों की है। रैंगिंग से ज्यादा परेशान होने पर लड़के तो लॉज धर्म शाला या मित्र के यहाँ शरण ले लेते है। लड़कियाँ ऐसा नही कर पाती है। लड़कियों को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है जो घटित हो उसकी पूरी जानकारी यथा समय अपनी मां को अवश्य दे।
रैंगिंग को रोकने ऐंटीरैगिग कानून दूसरे कानूनों की तरह कानून मात्र है। इस कानून में दोषियों को 2 वर्ष की सजा और 10 हज़ार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है पर दोष रैगिंग साबित हो जाने के बाद। ऐंटीरैगिंग कानून के अस्तित्व में सबसे बड़ी बाधा यह है कि शिकायतें बहुत कम होती है । इसका मुख्य कारण यह है सीनियर छात्र अपने जूनियर छात्र को आतंकित रखता है। जूनियर छात्रों को अपने भविष्य की चिंता रहती है। हर कॉलेज में रैगिंग रोकने के लिये और शिकायतों पर कार्यवाही करने के लिये ऐंटीरैगिंग कमेटी बनाई जाती है। इस कमेटी में आमतौर पर कॉलेज के प्रोफेसर ही रहते हैं। जिनके लिये रैगिंग रोकना थोपा हुआ बोझिल काम लगता है। अगर रैगिंग के मामले में कार्यवाही करते है तो कॉलेज की छबि को आंच आयेगी। उनकी पहली कौशिश यह रहती है कि मामले को ऐन केन प्रकारण ठंडा किया जाये। मेरे गृह नगर राघौगढ़ में मेरे मित्र एक प्रोफेसर से मेरी चर्चा हुई उनका कहना है हम भी दूर से आकर यहॉ नौकरी कर रहे है हमारे साथ भी हमारा परिवार पत्नी बच्चे है। अगर आधी रात को किसी होस्टल में सीनियर अपने जूनियर की रैगिंग ले रहे है तो हम क्या कर सकते है। सीनियर छात्रों का इतना खौफ रहता है कि महाविद्यालय प्रशासन भी उनके विरूद्ध कार्यवाही करने से कतराता है। हालत यह है कि सरकार एवं कॉलेज प्रशासन की अनदेखी लापरवाही से देश में रैगिंग अनेक अमानवीय तरीकों से जोरशोर से बढ़ रही है। अगर रैगिंग के नाम पर छात्रों को फिनायल या टायलेट क्लीनर जबरन पिलाया जायेगा तो उनके शरीर के अंग काम नही करेंगे मजबूर होकर युवा पीढ़ी आत्म हत्या करेगी। युवा पीढी कैसे बचाया जाये यह आज का ज्वलंत प्रश्न है।