अचानक हृदयाघात से हो रही मौतों को चिकित्सक बिरादरी “लॉन्ग कोविड” के रूप में पहचान रही है। ऐसे समय में लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार क्या सुझाव अथवा उपाय हो सकते हैं?
18/12/2022 को “टाइम्स ऑफ इंडिया” अखबार लिखता है कि “डॉक्टरों का कहना है कि अचानक कार्डियक मौतों को लॉन्ग कोविड से जोड़ा जा सकता है”। देश के प्रमुख दैनिक अखबार में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कई विडियोज और घटनाओं को संज्ञान में लेते हुए इस विषय पर एक लेख लिखा है।
एम्स (एआईआईएमएस) में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर डॉ राकेश यादव व अन्य ने 2020 में ही अपने शोध “COVID-19 & सडन कार्डियक डेथ: ए न्यू पोटेंशियल रिस्क” में लिखा था कि COVID-19 संक्रमण के साथ अचानक कार्डियक डेथ (SCD) एक परेशान करने वाली चिंता के रूप में उभरी है। प्रतिष्ठित पत्रिका “फॉर्च्यून” में छपे लेख के अनुसार 32 देशों में 136 शोध संस्थानों को शामिल करने वाले एक बड़े अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने महामारी पूर्व स्तरों की तुलना में युवा रोगियों में इस्केमिक स्ट्रोक की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की है और यह सभी उम्र के लोगों के लिए बराबर खतरा है।
कुल मिलाकर चिकित्सक बिरादरी इस बात पर एकमत है कि कोविड-19 संक्रमण से उबर आए लोगों में अनेक जटिल विकारों की संभावना बढ़ जाती है जिसमें अकस्मात हृदयाघात भी शामिल है। लेकिन इसके पीछे के कारण को अभी तक समझा नहीं जा सका है! जब सटीक कारण नहीं पता तो इलाज कैसे होगा?
इसलिए इस संबंध में आयुर्वेद की शरण में जाया जा सकता है क्योंकि आयुर्वेद में ही सम्पूर्ण नादानिक उपचार का दावा किया जाता है।
यह तो सर्वविदित है कि आयुर्वेद में बुढ़ापा और रोग से जनित कमजोरियों/दुष्प्रभावों या जीवन की गुणवत्ता के ह्रास/क्षरण का सर्वोत्तम उपचार उपलब्ध है रस रक्त आदि धातुओं से जनित ऐसा कोई भी विकार अथवा रोग नहीं है जिसका आयुर्वेद में उपचार संभव ना हो। और आयुर्वेद के अनुसार रस आदि धातुओं की कमजोरी से रोग होते हैं न कि वायरस से। तो आइये देखते हैं कि ह्रदय सम्बन्धी पोस्ट-कोविद जटिलताओं से आयुर्वेद के द्वारा कैसे निपटा जा सकता है।
कोविड-19 विषाणु मानव शरीर में श्वसन प्रणाली के द्वारा प्रविष्ट होता है जिसके कारण फेफड़े और श्वसन नलिकाएं सबसे पहले संक्रमित होकर क्षतिग्रस्त होती हैं। गम्भीर संक्रमण की स्थिति में फेफड़ों की ऑक्सीजन अवशोषण क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है, जिसके कारण शरीर के अन्य अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होती है और ह्रदय, मस्तिष्क, जिगर/यकृत, गुर्दे आदि अंग दुष्प्रभावित होते हैं। फिर संक्रमण के कारण ट्रिगर हुई प्रतिरक्षण प्रणाली के कारण भी ह्रदय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में कायाकल्प रसायन के साथ ह्रदय को पुष्ट करने वाली आहार, विहार व औषधियों की योजना का पालन किया जा सकता है।
प्रभाकर वटी, लक्ष्मीविलास रस, आरोग्यवर्धनी वटी, नागार्जुनाभ्र, भीमसेनीकपूर, चन्द्रोदय रस, चिंतामणि रस आदि रसायन योग व अर्जुनारिष्ट, बलाद्यघृत, त्रिफला चूर्ण, च्यवनप्राशावलेह, दशमूलारिष्ट, अश्वगन्धारिष्ट आदि शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधियां ह्रदय स्वास्थ्य हेतु सर्वोत्तम योग कहे गए हैं। अर्जुन छाल के अलावा आम्र पत्र, पाठा मूल, गोखरू, शालिपर्णी, मधुका, जीवन्ती, करञ्ज पत्र, दाडिमा बीज, आदि हृदय को पुष्ट करने वाली औषधियां
बृहदत्रयी (सुश्रुतसंहिता + चरकसंहिता + अष्टाङ्गहृदय) में वर्णित हैं जिनके गुणों को आधुनिक विज्ञान के द्वारा प्रमाणित भी किया जा चुका है।
पथ्य/अपथ्य योजना:
शालिधान्य, खिचड़ी, फिरनी, दलिया, मूंग, कुलथी, परवल, केला, कोहड़ा, पेठा, मीठे आम, अमलतास की फली, अनार, कच्ची मूली, कोमल शाक, पुराना गुड़, मट्ठा, सेंधा नमक, अजवाइन, लहसुन, हरड़, कूठ, धनिया, पीपल, अदरक, कांजी, सिरका, मधु, श्वेत चंदन आदि हृदय रोगियों के लिए हितकारी हैं। तृषा, कास, छर्दि/उल्टी, श्रमश्वास, आंसुओं के वेग का निरोध, भेड़ का दूध, काषय रस, विरोधी आहार, पत्र शाक, सुखाए हुए शाक, क्षार, महुआ आदि का त्याग हृदय रोगी को कर देना श्रेयष्कर होता है। तेल, खटाई, छाछ, गुरु अन्ना, कषाय द्रव्य, थकावट, धूप, क्रोध, चिंता, अधिक बोलना, यह सभी ह्रदय रोग में अपथ्य हैं ।
इति!
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