जयपुर गौरव-तपस्वी मुनि विशाल सागर
दिगम्बर सन्त तपस्वी मुनि विशाल सागर का जन्म 10 जून, 1973 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में सांगा का रास्ता सांगा का भवन में श्रीमती पदमा देवी की कोख से हुआ । आपके पिता का नाम श्री माणकचन्द जैन पाण्ड्या था। माता-पिता बहुत ही धार्मिक प्रवर्ती के थे ।नित्य सांगा का मन्दिर व चौकड़ी मोदी खाना क्षेत्र के विभिन्न जिनालयों में दर्शन पूजन पाठ कर अपनी दैनिकचर्या आरम्भ किया करते थे। माणक चंद जी के पाँच सन्तान थी – सुनील, अनिल, सुधीर, सुनीता, व अनिता जैन। इनमें तीसरे नम्बर के सुधीर जैन ही आगे चलकर जयपुर जैन समाज के गौरव के रूप में मुनि विशाल सागर के नाम से प्रख्यात हुए। भैया सुधीर की प्रारम्भिक शिक्षा बाल शिक्षा मंदिर महावीर पार्क स्कूल, श्री दिगम्बर जैन महावीर स्कूल व अग्रवाल स्कूल जयपुर में हुई। गुप्ता कॉलेज व जयपुर कॉलेज में भी अध्ययन किया। जौहरी बाजार गोपाल जी के रास्ते में जवाहरात की गद्दी पर बैठकर नगीनों की छटाई व ज्वैलरी का कार्य भी किया।
बड़े भाई अनिल जैन के साथ मिलकर व्यापार किया। सन् 1998 में फाइनेन्स व चिटफ़ंड कम्पनियों में धोखाधड़ी होने से काफी नुकसान हुआ। इन सबसे आहत होकर भाई सुधीर दशलक्षण पर्व में सन् 1999 में अलवर में जैन भवन में लगने वाले श्रावक संस्कार शिविर में शामिल हुये वहाँ मुनिश्री सुधा सागर जी के आशीर्वाद से प्रथम बार दशलक्षण पर्व में दस उपवास किए। यही से धर्म में विशेष रूचि जाग्रत हुई वही सांसारिक कार्यों के प्रति उदासीनता का भाव आता चला गया ओर श्री महावीर जी में महावीर जयन्ती के दिन आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज (पोरसा वाले) से ब्रह्मचर्य व्रत का नियम धारण किया तथा बाद में सिद्धार्थ नगर जयपुर के श्री महावीर जिनालय में प्रतिदिन अभिषेक पूजन व नगर में आने वाले सन्तों की सेवा में सक्रिय रहे। भैया सुधीर ने मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ते हुए 22 अगस्त 2004 को जौहरी बाजार में वर्षायोग कर रहे मुनिश्री विशद सागर जी से 7 प्रतिमा के नियम अंगिकार किये।
संयोग नव दीक्षित आचार्य से दीक्षा
13 फरवरी 2005 के विशेष दिन मालपुरा की धरती पर आचार्य श्री विराग सागर जी के आशीर्वाद से आचार्य श्री भरत सागर जी ने मुनिश्री विशंद सागर जी को आचार्य पद के संस्कारों से संस्कारित किया।और इसी शुभ दिन जयपुर के सुधीर जैन को नव दीक्षित आचार्य परमेष्ठी श्री विशद सागर जी ने मुनि दीक्षा देकर मुनि विशाल सागर जी के नाम से अलंकृत किया। जिनका प्रथम चातुर्मास निवाई में हुआ।
विशाल सागर के साधनामय तप
विशाल सागर इस संसार रूपी विशाल सागर से निर्वाण के पथ पर बढ़ते गए और तप त्याग वृत्त उपवास के कठिन मार्ग पर चलते हुए पहुँचे तीर्थ राज सम्मेद शिखरजी । तीर्थराज सम्मेद शिखर की गौतम गणधर टोंक में चरणों के समीप लगातार 157 घण्टे तक रहकर कठोर काय क्लेश तप आत्म ध्यान साधना खड़गासन योग जप तप साधना कर देश की समग्र जैन समाज में जयपुर का नाम रोशन किया।
परम पूज्य आचार्य श्री विशद सागर जी के आशीर्वाद से मुनिश्री ने पहाड़ की 25 टोकों में हर एक कूट की लगातार 1008-1008 वन्दना की जो आज से पूर्व किसी भी श्रावक या त्यागी व्रती द्वारा नहीं की गई। इस प्रकार देश के इकलोते सन्त बने, जिन्होंने यह दुर्लभ कार्य किया। शिखर जी में 3 मई, 2022 से 8 मार्च, 2023 तक मुनिश्री ने पहाड़ की 306 बार चरण वन्दना की जो अपने आप में एक इतिहास है।
496 उपवास एवं 61 पारणा करने वाले सिंह निष्क्रीड़ित व्रतधारी अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के स्वर्ण भद्र कूट पर होने वाले हर पारणे में मुनिश्री शामिल रहे। एक बार तो कही पारणा देखने से वंचित न रह जाए मुनिश्री ने बीस पंथी कोठी विमल छतरी से स्वर्ण भद्र कूट तक की चढ़ाई मात्र रिकार्ड समय 75 मिनट में पूरी कर एक दुर्लभ कार्य किया। मुनिश्री ने पहाड़ की 5 बार पद परिक्रमा भी की। शिखर जी में जनवरी माह में हुए प्रदर्शनों के दौर में 15 जनवरी को ज्ञानधर कूट पर असमाजिक तत्वों द्वारा किए उपसर्ग रूपी अभद्र व्यवहार को शांत भाव से सह कर मुनि की शान्त व सहनशील छवि का उदाहरण पेश किया । शिखर जी प्रवास के 10 महिने में 108 व्रत-उपवास कर साधना की।
इस प्रकार जयपुर गौरव मुनिश्री विशाल सागर जी महाराज ने अपने आत्म कल्याण व साधना के उच्च मार्ग पर चलते हुए जैन नगरी जयपुर का नाम रोशन किया। कई-कई घण्टे लगातार बैठकर तपस्या करना, कई-कई घण्टे लगातार खड़गासन में साधना करना तथा पाँच हजार से अधिक वृत उपवास कर चुके मुनिश्री विशाल सागर जी महाराज, जो कि गुरुवर विशद सागर जी की छत्रछाया में पिछले 19 वर्ष से साधनारत है, के चरणों में शत् शत् नमन।
(सौजन्य: धन कुमार जैन, जनकपुरी जयपुर )
आलेख – पदम जैन बिलाला
अध्यक्ष – श्री दिगम्बर जैन मन्दिर
जनकपुरी – ज्योतिनगर जयपुर