जयपुर। नेहरू नगर स्थित श्री सीताराम जी मंदिर में चल रहे श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ के छठवें दिन शनिवार को भक्तों ने को माखन चोरी,बाललीला प्रसंग की कथा सुनी। इस दौरान गोर्वर्धन की पूजा हुई और 56 भोग सजाया गया।
इस मौके पर व्यास पीठ से वृंदावन के परम पूज्य गोविन्द भैया ने कहा कि जहां स्वार्थ समाप्त होता है मानवता वहीं से प्रारम्भ होती है मानव योनि में जन्म लेने मात्र से जीव को मानवता प्राप्त नहीं होती। यदि मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद भी उसमें स्वार्थ की भावना भरी हुई है, तो वह मानव होते हुए भी राक्षसी वृत्ति की पायदान पर खड़ा रहता है। यदि व्यक्ति स्वार्थ की भावना को त्याग कर हमेशा परमार्थ भाव से जीवन यापन करे तो निश्चित रूप से वह एक अच्छा इंसान है, यानि सुदृढ़ मानवता की श्रेणी में खड़ा होकर पर सेवा कार्य में रत है, क्योंकि परमार्थ की भावना ही व्यक्ति को महान बनाती है।
परमात्मा श्री कृष्ण की लीलाओं में पूतना चरित्र पर व्याख्यान देते हुए कहा कि कंस स्वयं को सब कुछ समझ लिया। हमसे बड़ा कोई न हो। जो हमसे बड़ा बनना चाहे या हमारा विरोधी हो उसको मार दिया जाय। ऐसा निश्चय कर ब्रज क्षेत्र में जितने बालक पैदा हुए हो उनको मार डालो, और इसके लिये पूतना राक्षसी को भेजा तो प्रभु श्री बालकृष्ण भगवान ने पूतना को मोक्ष प्रदान किया।माखन चोरी लीला प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए आचार्य श्री ने कहा कि दूध, दही, माखन को खा-खाकर कंस के अनुचर बलवान होकर अधर्म को बढावा दे रहे थे, इसलिए प्रभु ने दूध, दही, माखन को मथुरा कंस के अनुचरों के पास जाने से रोका और छोटे-छोटे ग्वाल-बालों को खिलाया जिससे वे ग्वाल-बाल बलवान बनें और अधर्मी कंस के अनुचरों को परास्त कर सकें। भगवान श्री कृष्ण ग्वाल-बालो से इतना प्रेम करते थे कि उनके साथ बैठकर भोजन करते-करते उनका जूठन तक मांग लेते थे। महाराज श्री ने कहा कि हम जीवन में वस्तुओं से प्रेम करते है और मनुष्यों का उपयोग करते है। ठीक तो यह है कि हम वस्तुओं का उपयोग करें और मनुष्यों से प्रेम करें। इसलिये हमेशा से प्रेम की भाषा बोलिये जिसे बहरे भी सुन सकते हैं और गूंगे भी समझ सकते है। प्रभु की माखन चोरी लीला हमें यही शिक्षा प्रदान करती है।
इस मौके पर कथा के आयोजक रामस्वरूप पाटाणी,सुधीर-सोनू नाटाणी व सुनील-शालू नाटाणी ने श्रीमद भागवत की आरती उतारी व पूजन की।