अशोकनगर । योग का अर्थ है जुडाव ,जुड़ना, जो तन और मन को जोड़ता है ,आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है, जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हो जाना। योगाचार्य महर्षि पतंजली ने अष्टांग योग की विभावना को “योगदर्शनम्” ग्रंथ में सूत्रों के रूप में प्रस्तुत किया है। गीता दीदी ने बताया कि हमारे ऋषि मुनियों ने योग के द्वारा शरीर, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ अंग बताएँ हैं – यम ,नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान ,समाधि जिसे अष्टांग योग कहते हैं। योग सिर्फ व्यायाम नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है, जो आपको इंद्रियों से परे की कुछ एक झलक देता है।
हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं, जहाँ लोग शरीर को मोडते, मरोड़ते, खिंचते हैं पर योग वास्तव में मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता को उन्नत करने वाला गहन विज्ञान है। योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है। महर्षि पतंजली के अनुसार योग भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है। योग से जुड़ी ये सभी बातें “स्वयं स्वस्थ बनो अभियान-भारत” द्धारा संचालित योगाभ्यास प्रशिक्षण शिविर के दौरान मुंबई से आई डॉ.गीता जैन ने कही। उन्होनें बताया कि शास्त्रों के अनुसार 84 लाख आसन होते हैं। आसन के नियम है कि उन्हें मंद ,सुस्थिर और लयबद्ध किया जाए और आसन हमारे शरीर की क्षमता के अनुसार करना चाहिए। सभी आसन हम प्रातः खाली पेट या खाने के साढ़े चार घण्टे बाद कर सकते हैं। संस्था के संरक्षक सुभाष जैन कैंची बीड़ी एवं चेयरमेन गोलु रतरा ने बताया कि शिविर के दौरान योग विशेषज्ञ एवं प्राकृतिक चिकित्सक डॉ.गीता जैन मुम्बई एवं प्रशिक्षण सहयोगी दीपक जानी महेसाणा ने शिविरार्थियों को वज्रासन, पद्मासन, श्वसन मार्ग शुद्धि, पवन मुक्तासन, मार्जरासन, उत्थित पादासन, उत्तान ताड़ासन, भुजंगासन, शलभासन, द्रोणासन, उत्तान वक्रासन, हस्तपादासन, सेतुबंधासन , पर्वतासन, चैतन्यासन का अभ्यास कराया गया। शिविर में आसनों के साथ-साथ शरीर के जोड़ों के लिए लाभकारी मेरेडियन एक्सरसाइज भी कराई गई। यह योग शिविर वर्धमान विद्यालय में आयोजित किया जा रहा है इससे अनेकों लोग लाभान्वित होकर स्वस्थ जीवन जीने की कला सीख रहें हैं।