सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओं ने किया सामूहिक आलोचना पाठ

जो कुछ भी पाप हुआ मुझसे मिच्छामी दुक्कड़म करता हूं

शांतिभवन में समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में हुआ आयोजन

भीलवाड़ा। सुनील पाटनी । आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य एवं निर्देशन में गुरूवार को शांतिभवन में प्रवचनमाला जुग-जुग जियो के तहत सामूहिक आलोचना का पाठ किया गया। इसमें शहर के विभिन्न क्षेत्रों से सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओं ने सहभागिता करते हुए अब तक विभिन्न भवों में जाने-अनजाने में हुए पापों के लिए गुरूदेव की साक्षी में मिच्छामी दुक्कड़म करते हुए आलोचना की। पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि मोक्ष प्राप्ति का सपना पूरा करने के लिए विराधना का जीवन छोड़ना होगा। जो विराधना अब तक हो चुकी उसकी आलोचना करनी होगी। ऐसा करके हम की गई गलतियों से छूटने का प्रयास कर सकते है। आलोचना के माध्यम से अनादिकाल से लेकर अब तक की गलतियों को वोसरामि करते हुए स्वयं को हल्का किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अनंत-अनंत बार जीव का जन्म-मरण हुआ। इस दौरान कोई ऐसा जीव नहीं बचा जिसके साथ किसी न किसी रूप में रिश्ता जुड़ा न हो। अज्ञान व अंजान होने के कारण उनको वोसरा भी नहीं पाए। जब तक वोसरामि न हो जाए जुड़ाव बना रहता है। आलोचना उन सब पापों को वोसरामि करने का दिन है। आगम में बताया गया है कि आलोचना से जीव को क्या प्राप्त होता है। मुनिश्री ने कहा कि आलोचना से मन का बोझ हल्का होने के साथ भीतर की गदंगी दूर हो जाती है। स्वयं की आलोचना करने से जीवन के उबड़-खाबड़ रास्ते समतल हो जाते है। आलोचना नहीं होने पर जीवन के सीधे-सादे रास्तों पर भी परेशानियों के झटके लगना शुरू हो जाते है। जो विराधनाएं व पाप करते आए उनकी आलोचना करने के बाद प्रायश्चित करना चाहिए। आलोचना से पहले की गई गलती कबूल करने के बाद फिर प्रायश्चित होता है। पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि ज्ञानीजन कहते है गलतियों को गुरू के समक्ष प्रकट कर देने से आलोचना हो जाती है। अनंत जीवों से आलोचना करनी होगी। स्वयं को विशुद्ध भाव से आलोचना के लिए प्रस्तुत करना चाहिए। परमात्मा से निवेदन करे कि आत्म साक्षी के साथ आलोचना के लिए तत्पर हुआ हूं। जो भी पाप मेरे द्वारा हुए है उन्हें परमात्मा की अदालत में कबूल कर प्रायश्चित करना चाहिए। शुरू में गायन कुशल जयवंतमुनिजी ने प्रेरणादायी गीत ‘जिनवाणी सुनकर अंतर मन को खोलना’ की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य मिला। धर्मसभा में नासिक आदि स्थानों से आए श्रावकगण मौजूद थे। अतिथियों का स्वागत शांतिभवन श्रीसंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़ ने किया। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।

चातुर्मास में सेवाएं देने वालों का सम्मान रविवार को

श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने बताया कि गतिमान चातुर्मास का अंतिम प्रवचन 8 नवंबर को होगा। इससे पूर्व 6 नवंबर रविवार को धर्मसभा में चातुर्मास के दौरान श्रेष्ठ सेवाएं देने वाले कार्यकर्ताओं का श्रीसंघ की ओर से सम्मान किया जाएगा। चातुर्मास का समापन 8 नवंबर को वीर लोकाशाह जयंति पर होगा। इस दिन श्रावक-श्राविकाएं जप-तप व भक्ति का नया इतिहास बनाने वाले इस चातुर्मास को लेकर मन के भाव भी व्यक्त करेंगे। चातुर्मास समाप्ति के बाद 9 नवंबर को सुबह 8.15 बजे पूज्य समकितमुनिजी म.सा. शांतिभवन से वर्धमान कॉलोनी स्थित अंबेश भवन के लिए विहार करेंगे। मुनिश्री का 10 नवंबर को चन्द्रशेखर आजादनगर, 11 नवंबर को श्याम विहार एवं 12 व 13 नवंबर को यश सिद्ध स्वाध्याय भवन में प्रवास रहेगा।