एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रणेता लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई

सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती 31 अक्टूबर पर विशेष :
-डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर

( राष्ट्रीय एकता, अखंडता और अस्मिता के रक्षक लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई)

सरदार पटेल ने जिस तरह से हमारे देश को एकता के सूत्र में बांधा था हमें उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए कार्य करना होगा तथा सच्ची निष्ठा से समाज सेवा करनी होगी तभी हम उनके बताए गए मार्ग पर चलने के योग्य होंगे। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों ने भारत को स्वाधीन तो कर दिया था परंतु जाते हुए वे गृहयुद्ध एवं अव्यवस्था के बीज भी बो गये। बल्लभ भाई पटेल ने जिस भावना से 565 रियासतों को अखंड भारत में शामिल किया, यह संसार का सबसे पहला बिना तलवार के किया गया था। इस विलय के साथ ही इस देश को एक सूत्र में बांधकर आज का अखंड भारत बना है। आज गुवाहाटी से चौपाटी और कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक सूत्र में बंधा हुआ भारतवर्ष है। उसमें हमें सरदार बल्लभ भाई पटेल की आत्मा दिखाई देती है।
सूझबूझ के धनी :
बल्लभभाई पटेल का जन्म 31अक्तूबर 1875 को हुआ था। इनके पिता श्री झबेरभाई पटेल ग्राम करमसद (गुजरात) के निवासी थे। जन्मजात परम देशभक्त और निर्भीक अंदर से करुण और बाहर से कठोर, उद्देश्य प्राप्ति के लिए अटल, मूल्यवान राजनीतिक और दूरदर्शी, दुश्मन की सही पहचान करने वाले, विचारों में दृढ़ और लगन में पक्के, जोखिमों से न घबराने वाले, सूझबूझ के धनी थे जननायक सरदार पटेल। आज की परिस्थितियों में लौहपुरुष की परम आवश्यकता महसूस की जा रही है।
ऐसे बने लौह पुरुष :
एक बार उनकी आंख के बगल में फोड़ा निकल आया।उन्होंने उस समय अपने घर पर ही इलाज किया।उन दिनों गाँवों में इसके लिए लोहे की सलाख को लालकर उससे फोड़े को दाग दिया जाता था।लुहार ने सलाख को भट्ठी में रखकर गरम तो कर लिया।परंतु बल्लभभाई जैसे छोटे बालक को दागने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ी। इस पर बल्लभभाई ने सलाख अपने हाथ में लेकर उसे फोड़े में लगा दिया। खून और मवाद देखकर पास बैठे लोग चीख पड़ेपर बल्लभभाई ने मुँह से उफ तक नहीं निकाली।
स्वदेशी रंग में रंग गये :
सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता व अखंडता के प्रतीक हैं। साधारण परिवार होने के कारण बल्लभभाई की शिक्षा निजी प्रयास से कष्टों के बीच पूरी हुई। अपने जिले में वकालत के दौरान अपनी बुद्धिमत्ता, प्रत्युत्पन्नमति तथा परिश्रम के कारण वे बहुत प्रसिद्ध हो गये। इससे उन्हें धन भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ। इससे पहले उनके बड़े भाई विट्ठलभाई ने और फिर बल्लभभाई ने इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1926 में बल्लभभाई की भेंट गांधी जी से हुई और फिर वे भी स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने बैरिस्टर वाली अंग्रेजी वेशभूषा त्याग दी और स्वदेशी रंग में रंग गये।
‘सरदार’ की उपाधि :
बारडोली के किसान आन्दोलन का सफल नेतृत्व करने के कारण गांधी जी ने इन्हें ‘सरदार’ कहा। फिर तो यह उपाधि उनके साथ ही जुड़ गयी। सरदार पटेल स्पष्ट एवं निर्भीक वक्ता थे। यदि वे कभी गांधी जी से असहमत होते,तो उसे भी साफ कह देते थे।वे कई बार जेल गये।सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में उन्हें तीन वर्ष की सजा हुई।
उपप्रधानमन्त्री तथा गृहमन्त्री :
स्वतन्त्रता के बाद उन्हें उपप्रधानमन्त्री तथा गृहमन्त्री बनाया गया। उन्होंने केन्द्रीय सरकारी पदों पर अभारतीयों की नियुक्ति रोक दी। रेडियो तथा सूचना विभाग का उन्होंने कायाकल्प कर डाला। गृहमन्त्री होने के नाते रजवाड़ों के भारत में विलय का विषय उनके पास था। सभी रियासतें स्वेच्छा से भारत में विलीन हो गयीं। परंतु जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद ने टेढ़ा रुख दिखाया। सरदार की प्रेरणा से जूनागढ़ में जन विद्रोह हुआ और वह भारत में मिल गयी। हैदराबाद पर पुलिस कार्यवाही कर उसे भारत में मिला लिया गया।15 दिसम्बर, 1950 को भारत के इस महान सपूत का देहान्त हो गया।
अद्वितीय है स्टैच्यू आफ लिवर्टी :
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री वल्लभभाई पटेल को समर्पित एक स्मारक है,जो गुजरात में स्थित है। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर इस विशालकाय मूर्ति के निर्माण का शिलान्यास किया था। यह स्मारक सरदार सरोवर बांध से 3.2 किमी की दूरी पर साधू बेट नामक स्थान पर है जो कि नर्मदा नदी पर एक टापू है। यह स्थान भारतीय राज्य गुजरात के भरुच के निकट नर्मदा जिले में स्थित है। यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसकी लम्बाई 182 मीटर (597 फीट) है। इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति चीन में स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध है, जिसकी आधार के साथ कुल ऊंचाई 153 मीटर (502 फीट) हैं। इसका उदघाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 31 अक्टूबर 2018 को सरदार पटेल के जन्मदिवस के मौके पर किया गया था। यह अद्वितीय प्रतिमा सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
आज सरदार बल्लभ भाई पटेल के विचार बहुत अधिक प्रासङ्गिक और महत्वपूर्ण हैं। वे राष्ट्रीय एकता, अखंडता और अस्मिता के रक्षक ‘लौह पुरुष’ थे। राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में भारत सरकार उनकी जयंती मना रही है। सशक्त, सुदृढ़ और समृद्ध भारत की नींव रखने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को उनके जन्म दिवस पर शत-शत नमन। उनके दिखाए मार्ग हमें देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए सदा प्रेरित करते रहेंगे।