केशवरायपाटन। परम पूजनीय भारत गौरव गणिनो आज माता जी ने शंका समाधान में देशभर के विभिन्न शहरों से पधारे हुए भक्तगणों की शंका का समाधान किया। दान देने का क्या महत्व है? नए मंदिर के निमार्ण एवं प्राचीन तीर्थ क्षेत्र के जीर्णोद्धार में दिया दान कितना फलदायी है? इस शंका का समाधान करते हुए पूज्य गुरु मां ने कहा कि :- दान का तात्पर्य है परोपकार की भावना से सहयोग की भावना से द्रव्य को देना। आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने श्रावकों के लिए रयणसार ग्रंथ में दान और पूजा को मुख्य कहा है।100 नए मंदिर बनाने का फल एवं 1 प्राचीन तीर्थ क्षेत्र का जीर्णोद्धार कराने का फल बराबर होता है। आचार्य समंतभद्र स्वामी कहते हैं। एक वट के बीज के बराबर दिया हुआ दान भी भवांतर में वट के वृक्ष के बराबर फलदायी होता है। वट का बीज का सरसों के बीज का लगभग एक चौथाई होता है। पूज्य माताजी से जब शंका समाधान कार्यक्रम में पूछा गया कि- केशवरायपाटन क्षेत्र का नाम केशवराय पाटन कैसे पड़ा? और यह अतिशय क्षेत्र कैसे कहलाया? पूज्य माताजी ने इसका समाधान एवं जानकारी विस्तृत रूप से बताते हुए कहा की- आज से 2000 वर्ष पूर्व आचार्य कुंदकुंद स्वामी हुए हैं जिन्होंने यहां पर विराजमान जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ जी को निर्वाणकांड में नमस्कार करते हुए लिखा है “आसारम्में पट्टनि मुनिसुव्वओ तहेव वंदामी” अर्थात आशारम्य पट्टन (वर्तमान केशवराय पाटन) में मुनिसुव्रत को मैं नमस्कार करता हूं! पट्टन का अर्थ नदी समुद्र आदि के तट (किनारे) से होता है। यहां अनेकों अतिशय घटित हुए हैं, जब मुगलकाल में यहां आक्रमण हुआ तो छैनी हथौड़ों से भगवान को तोड़ा जाने लगा लेकिन जैसे ही भगवान के दाहिने पैर के अंगूठे को तोड़ा गया तो तीव्रवेग से दूध की धार निकल पड़ी और सारे आक्रांता भयभीत होकर भाग खड़े हुए। जब नगर में महामारी महामारी फैल गई तो सभी नगर वासी जंगलों की ओर पलायन कर गए, जाते समय भगवान के चरणों में एक दीपक जलाकर गए ,4-5 माह बाद जब वापिस आए तो देखा कि वह दीपक ज्यों का त्यों जल रहा है। भगवान की प्रतिष्ठा के विषय में आचार्य अर्हदवली द्वारा लगभग 4100 वर्ष पूर्व का उल्लेख मिलता है! कहते हैं कि ये प्रतिमा स्वयंभू है! अर्थात् स्वयं ही प्रकट हुई है! इससे ज्ञात होता है की यहां का इतिहास बहुत पुराना है! क्षेत्र की अनेकों विशेषताएं हैं अनेकों साधु संतों ने आकर यहां तपश्चरण किया है! सदियों से यहां पर पूजन विधान हवन जाप आदि होते रहने से यहां की भूमि भी बहुत ऊर्जावान हो गई है। भगवान की ऊर्जा का तो कहना ही क्या है! उनके एक बार दर्शन करने मात्र से विघ्न बाधाएं क्षण मात्र में दूर हो जाती हैं! आज भी यहां अनेकों अतिशय घटित होते रहते हैं।
चेतन जैन केशोरायपाटन से प्राप्त जानकारी के साथ अभिषेक जैन लुहाड़िया रामगंजमंडी की रिपोर्ट