Sunday, November 24, 2024

मनुष्य की अनन्त इच्छायें: गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी

गुंसी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी (राज.) में भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न विज्ञाश्री माताजी के ससंघ सान्निध्य में महती धर्म प्रभावना चल रही है । चाकसू , निवाई जयपुर आदि समाजों से भक्तगण गुरु माँ के दर्शनार्थ पहुंच रहे हैं। पूज्य माताजी ने सभी को मंगल देशना के माध्यम से धर्मोपदेश देते हुए कहा कि – मनुष्य जीवन भर अपनी इच्छाओं के पीछे भागता रहता है। जीवन में कुछ इच्छाओं की पूर्ति तो हो जाती है, पर ज्यादातर इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती। मनुष्य द्वारा मनवांछित इच्छाओं की जब पूर्ति हो जाती है, तब वह फूले नहीं समाता। उस कार्य की पूर्ति का सारा श्रेय वह स्वयं को देता है। जब इच्छा की पूर्ति नहीं हो पाती, तब वह ईश्वर को दोष देने लगता है और अपने भाग्य को दोष देने लगता है। मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती हैं। वे धारावाहिक रूप से एक के बाद एक आती और चली जाती हैं। एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा मन में फिर उठने लगती है। इस प्रकार जीवन-पर्यन्त यही क्रम निरंतर चलता रहता है। इस वर्तमान भौतिक युग में लोग इच्छाओं से भी बड़ी महत्वाकांक्षाओं को मन में संजोने लगे हैं। ऐसी-ऐसी महत्वाकांक्षाएं संजोते हैं, जिनके बारे में स्वयं जानते हैं कि वे शायद ही कभी पूरी हो सकें। इस क्षणभंगुर संसार में सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए मनुष्य सदा प्रयत्‍‌नशील रहता है। इसके लिए वह सदैव कामना करता रहता है। वह नहीं जानता कि सुख स्वरूप तो वह स्वयं ही है।

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