अम्बाह। पिच्छी जिसे प्राप्त हो जाती है वह उसके कर्मों का पीछा छुड़ा देती है। पिच्छी वालों के पीछे लगे रहना। अवश्य ही आप भी एक ना एक दिन पिच्छी ग्रहण कर लोगे। पिच्छी रत्नत्रय का प्रतीक है। पिच्छी में बंधी डोर, रस्सी, सम्यक दर्शन, पंख ज्ञान और दंडी सम्यक चरित्र का प्रतीक है। जीवों की रक्षा करने के काम आती है। पिच्छी परिवर्तन प्राणी रक्षा का दिवस है। यह उदगार क्षुल्लक श्री विगुण सागर महाराज ने व्यक्त किए। वे शुक्रवार को श्री जैन धर्मशाला में आयोजित पिच्छिका परिवर्तन समारोह के दौरान धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।
पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष जिनेश जैन ने कहा कि पिच्छी मुनियों, संतों का आवश्यक उपकरण है। पिच्छी परिवर्तन बाहरी लेनदेन का नहीं बल्कि हृदय परिवर्तन का दिवस है। जो व्यक्ति संयम नियम लेकर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है, उसे मुनिश्री पुरानी पिच्छी प्रदान करते हैं और नई पिच्छी ग्रहण कर ली जाती है। वर्ष भर उपयोग करते-करते पंखों की मृदुता समाप्त हो जाती है। इसलिए वर्षायोग के बाद इसे बदलकर नई पिच्छी ग्रहण कर ली जाती है। यह पिच्छी परिवर्तन कहलाता है। कार्यक्रम का शुभारंभ बच्चों के मंगलाचरण से हुआ। चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन नगर पालिका अध्यक्ष श्रीमती अंजलि जैन ने किया वहीं आभार प्रदर्शन संतोष जैन रिठौना ने किया।