इस हाथ लिजे साथ दीजे इस तरह का दान करें : मुनि पुगंव श्री सुधासागर जी महाराज

दान के बिना आज तक कोई अमीर नहीं बना

ललितपुर। जैसा तुमने यहां किया है वैसा ही तुम्हारे लिए मिलेगा इसमें कुछ भी बदलाव नहीं होगा कलश कभी खाली हाथ स्थापित मत करना जो समय सीमा बाँधी है उसके अनुसार राशि भेंट करना कलश का पैसा तो मन्दिर का लगा है खाली हाथ कलश घर में प्रवेश नहीं करना इस हाथ लिजे साथ दीजे दान के लिए कहा गया कि इस हाथ से दिये दान का दुसरे हाथ को भी पता ना लगे मंगल कलश आदि का आपको लाभ और पूरा फल जब ही मिलेगा जब आप दान की राशि मन्दिर में भेंट कर दें । तब ही दान आपको फलेगा उक्त आश्य के उद्गार मुनि पुगंव श्री सुधासागरजी महाराज ने ललितपुर में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए ।

जिज्ञासा समाधान में सुनाये संस्मरण
मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने बताया कि मुनिश्री ने जिज्ञासा समाधान में कहा कि पुण्य और पाप दोनों एकसी बेडी नहीं है सोने की बेड़ी को कोई सुनार भी कुछ सोना लेकर निकाल सकता है। सोना यानी पुण्य लेकर आओगे तो गुरु भी शरण दे देंगे चक्रवर्ती पुण्य लेकर आये और गुरु से दीक्षा देने का आग्रह करने लगे तो पुण्यवान को शरण दे देंगे वहीं पापी को कोई शरण तक नहीं देता। उन्होंने कहा कहाकि एक बार सन 1995 की बात है अशोक पाटनी आये और चर्चा में कहने लगे कि महाराज जी ऐसी माइंस मिली है कि सात पीढ़ी भी इस माइंस को नहीं खोद पायेगी इतना मार्बल है इसमें। सूरत चातुर्मास के समय विहार करते हुए राज नगर उदयपुर के उस स्थान से निकलते हुए रुकें उस स्थान पर अशोक पाटनी ने पांच करोड़ का आफिस बनाया था उसे दिखाते हुए कहते हैं कि इस आफिस को हटा कर खुदाई करना जिस माइंस की बात पहले बताई थी वह तो पुरी खुद गई ये सन 2005 की बात होगी। ऐसा पुण्य कहा से आता है ये कहां का पुण्य आया ये ऐसा ही है कलश बाद में लेंगे पैसे पहले देंगे कलश बाद स्थापित करेंगे । पहली बोली लेकर आखरी कलश स्थापना करते थे ।आज तक दुनिया में कोई व्यक्ति दान के बिना अमीर नहीं बना और ना बनेगा ये सिद्धान्त है ।

जिसकी हारने की तैयारी है वो एक दिन जीत सकेगा

मुनिश्री ने कहा कि जो व्यक्ति हारने की तैयारी नही कर सकता वो कभी जीत नही सकता है । गाड़ी चलाते है रोटी मिल रही है कभी रोटी नही मिल रही है। तब क्या तैयारी हैं। उपवास करनी की तैयारी है। हमे उपादेय तत्व को पाना है हमे उपादेय तत्व को नही समझना। हमें हेय तत्व को समझना है अच्छी तरह समझो अहितकरी को।मित्र को समझने की आवश्यकता नही है दुश्मन को समझो महाराणा प्रताप को अपनी शक्तीयों पर विश्वास था लेकिन दुश्मन की शक्तियों को नहीं समझ पाये यदि दुश्मन की शक्तियो पर ध्यान नहीं कर पाये इसी कारण महाराणा प्रताप को युद्ध में हार देखनी पड़ी मुनिश्री ने कहा कि जैनियों का पतन जब से आत्मा का ज्ञान हुआ वह परमात्मा के समान है सर्वशक्तिमान है तो मेरा कोई कौन क्या बिगाड़ सकता है राग द्वेष से कुछ नहीं बिगाड़ सकता है राग द्वेष करते रहे और पाप नहीं लगेगा ।