गुंसी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी में विराजमान भारत गौरव गणिनी आर्यिका विज्ञाश्री माताजी ससंघ सान्निध्य में शांतिविधान व शांतिधारा का क्रम प्रतिदिन चला आ रहा है। यात्रीगण प्रतिदिन शांतिधारा कर अपने को गौरवान्वित कर रहे हैं। पूज्य माताजी ने प्राचीन तीरथों व जिनबिंबों की रक्षा के लिए सहस्रकूट का निर्माण करवाया रही है।
माताजी ने अपने प्रवचनों में कहा कि हम अपनी संस्कृति से दूर होकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं। जबकि अच्छी संस्कृति के बिना मनुष्य ही नहीं रहेंगे। संस्कृति परम्पराओं से, विश्वासों से, जीवन की शैली से, आध्यात्मिक पक्ष से, भौतिक पक्ष से निरन्तर जुड़ी है। यह हमें जीवन का अर्थ, जीवन जीने का तरीका सिखाती है। मानव ही संस्कृति का निर्माता है और साथ ही संस्कृति मानव को मानव बनाती है। पाश्चात्य संस्कृति मानव को दानव बना रही है। पहले सभी प्रातः काल में प्रभु का ध्यान भजन आदि करते थे। पर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर हम अपना रहन – सहन , खान – पान , रीति रिवाज सब भूलते जा रहे हैं। हम पश्चिम के देशों के तौर तरीके अपनाने की होड़ में लगे है तथा 6 हजार वर्ष पूरानी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को भूलाते जा रहे हैं। वक्त है हमें समय रहते सावधान हो जाना चाहिए तथा अपनी संस्कृति को बचाने का प्रयत्न करना चाहिए। आज आवश्यकता भारतीय संस्कृति की परम्पराओं को सहेजकर रखने के साथ साथ पाश्चात्य संस्कृति के आधुनिक मूल्यों को आत्मसात करने की हैं। हमें अपने धर्म देश व संस्कृति की रक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए क्योंकि साधन से साधना नहीं होती बल्कि साधना से साधन स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं।