डॉ. नरेंद्र जैन भारती सनावद (म. प्र.)
मानव जीवन में संस्कारों का महत्व है। संस्कारित जीवन ही मूल्यवान होता है। यह संस्कार मानव को धर्म धारण और पालन करने से मिलते हैं। पशुओं के लिए ज्ञान, ध्यान और तपस्या के साधन नहीं मिलते इसीलिए वह भोजन में मस्त रहकर जीवन व्यतीत कर देते हैं। मनुष्य के पास बुद्धि और ज्ञानबल है जिसके कारण वह जो उत्तम कार्य करता है उससे उसकी श्रेष्ठता सिद्ध होती है। दुनिया में मानव जीवन को उत्कृष्ट और अच्छा इसलिए कहा जाता है क्यों कि मानव अपनी काया का उपयोग संयम और तप साधना में लगाकर आत्मा का कल्याण कर सकता है यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसका जीवन व्यर्थ चला जाता है। मानव के संकल्प विकल्पों के कारण इस जीव ने 84 लाख योनियों में परिभ्रमण कर जन्म धारण किया तथा मृत्यु धारण की लेकिन उसे सच्चा रास्ता नहीं मिला। मनुष्य भव में जन्म लेकर जिसे जिनवाणी के ज्ञान का सुयोग मिला उसे ही आत्म कल्याण का अवसर मिला। अतः व्यक्ति को दृढ़ निश्चय, संकल्प और मनोबल बढ़ाकर, धर्म मार्ग में लगाकर,वैराग्यमयी प्रवृत्ति बनाकर मनुष्य जन्म को सार्थक करना चाहिए। ऐसे संस्कारों का बीजरोपण करना चाहिए जो आत्म कल्याण में सहायक बनें। इंद्रियों और मन को वश में करके व्यक्ति इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। राग द्वेष की निवृत्ति कर सकता है शुभ और अशुभ कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।यदि जीवन धर्म में बना रहेगा तभी कालांतर में स्वर्ग और मोक्ष की कल्पना कर सकते हैं। असंयमित और अमर्यादित आचरण व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है इसलिए व्यक्ति को अंडा, मांस, मछली मद्य और मधु का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि भोजन, पानी छानकर पीना तथा असेव्यनीय पदार्थ का त्याग कर हम पापाचरण से बच सकते हैं। मनुष्य ऐसा करने में समर्थ है इसीलिए तो मानव जीवन को श्रेष्ठ जीवन कहा जाता है। अतः मानव को संस्कारित रहना चाहिए।