सम्पदा मेरी तो मेरी है तेरी भी मेरी है इस सम्पदा के कारण भाई भाई का दुश्मन बना: आचार्य श्री आर्जवसागर जी महाराज
अशोक नगर। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद व आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज ससंघ केसान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भइया शुयस एवं मुकेश भइया के मार्गदर्शन में चल रहे श्री चौबीस समवशरण विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ में आज चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा शहर के प्रमुख मार्गों से निकाली गई। जहां भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा का स्थान स्थान पर भव्य सत्कार किया। इसमें विधायक नपा अध्यक्ष पूर्व उपाध्यक्ष सहित अन्य जनप्रतिनिधि समलित हुए इसके पहले आज चौबीस समवशरण महा मंडल विधान में जगत कल्याण की कामना के लिए महा शान्ति धारा के साथ चौंसठ रिद्धि विधान के अर्घ समर्पित किया गया। प्रथम महापूजन का सौभाग्य धर्मेन्द्र कुमार रोकड़िया , द्वितीय सौधर्म इन्द्र जैन समाज के महामंत्री राकेश अमरोद, वहीं तृतीय महा पूजा कुबेर इन्द्र सतीश राजपुर चतुर्थ महा अर्घ महायज्ञ नायक संजीव कुमार श्रागर वहीं पंचम वलय पूजन बहुवलि मनोज कुमार रन्नौद, मुख्य समवशरण में महापूजा करते हुए अर्घ को समर्पित प्रतिष्ठा चार्य प्रदीप भइया शुयस मुकेश भइया दारा मंत्रोचार के साथ किया गया। इस दौरान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की महापूजन शैलेन्द्रश्रागर ने आचार्य श्रीआर्जव सागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में सम्पन्न कराई।
हम अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर कार्य करना सीखे
इस दौरान धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री आर्जव सागर जी महाराज ने कहा कि हम अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर कार्य करना सीखे दुनिया में विवाद जब भी होते हैं दुसरे के अधिकार क्षेत्र घुसने पर ही द्वंद होता है और जब यही द्वंद दो देशों में होने लगे तो युद्ध में बदल जाता है रिषभ देव ने भरत बहुवलि को अलग अलग राज्य दिये लेकिन जब भरत चक्रवर्ती ने बहुबलि को अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा तो उनके इनकार करने पर युद्ध की स्थिति निर्मित हो गई युद्ध में महा विनाश ही होता है। सदियों से युद्ध टालने वाले होते रहे हैं हिंसा को दुनिया में कोई स्थान नहीं है सब शान्ति चाहते हैं लेकिन फिर भी युद्ध होते हैं तो अहंकार के कारण ही होते हैं।