Friday, November 22, 2024

अन्तर्मना आचार्यश्री प्रसन्न सागर जी महाराज के प्रवचन से….

उदगाव, कोल्हापुर। लोग गाँव उजाड़ कर शहर तलाश रहे हैं..
एक हाथ में कुल्हाड़ी और वृक्ष से छाव मांग रहे हैं..!

एक युवक – धर्म की खोज करते करते, सन्त के सत्संग में पहुँच गया। सन्त से पूछता है, कौन सा धर्म करूँ-? सन्त ने कहा – गीता को पढ़ो। एक पादरी से पूछा – पादरी ने कहा बाइबल पढ़ो। मौलवी के पास गया, उन्होंने कहा कुरान पढ़ो। मेरे पास आया, हमसे पूछा -? कौन सा धर्म करूँ।हमने कहा – मानवीय कर्तव्य को करो। क्योंकि कर्तव्य मेव धर्मा। कर्तव्य का पालन करना ही धर्म है। आज हर मजहब अपने अपने धर्म के नाम पर सम्प्रदाय और पंथ थोप रहा है, जो वास्तविक धर्म नहीं है। आज हमारे देश को हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, इसाई और जैन की आवश्यकता नहीं है। आज देश को एक नेक इन्सान की आवश्यकता है। आज देश में सिर्फ नेक इन्सान की कमी है।यदि देश और राष्ट्र को उन्नत-समुन्नत बनाना है, तो हिन्दू मुसलमान के आत्मघाती लेबलों को उतार फेंकना होगा। क्योंकि धर्म – मन्दिर, मस्जिद, गिरजा और गुरूद्वारे में नहीं अपितु इन्सान के मन में है। मन्दिर, मस्जिद धर्म के साधन तो हो सकते हैं, लेकिन साध्य नहीं। साध्य तो मनुष्य का मन है। जब धर्म मन में बसता है तो दुश्मन भी मित्र जैसा दिखता है। जब मन से धर्म निकल जाता है तो बाप की हत्या करने में नहीं हिचकते हैं। जो प्रेम, दया, परोपकार, सेवा, मैत्री के गुणों से भरा हो, वही नेक इन्सान है। आप सोचो क्या हो -???
वैसे भी आज के जमाने में, बिना मतलब के कोई भी बात नहीं करता, तो साथ और सहयोग क्या देंगे। इसलिए ज्यादा उम्मीद मत करना अपनों से, जिनसे जितना लगाव होता है वो ही सबसे गहरा घाव देता है…!!! नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल औरंगाबाद ।

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