Sunday, November 24, 2024

सौधर्म इन्द्र का दरवार समवशरण में सजकर तैयार हुआ

पहले लक्ष्य निर्धारित करें लक्ष्य के बिना कदम बाहर ना निकालें: आचार्य श्री

अशोक नगर। श्री समवशरण महा मंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ में आज रात्रि में सौधर्म इन्द्र का दरबार सजा जहां भगवान को केवल ज्ञान की प्राप्ति होने पर सौधर्म इन्द्र का सिंहासन हिल उठता है तब सौधर्म इन्द्र सात कदम चलकर प्रभु को नमस्कार करते हुए कुबेर को समवशरण बनाने की आज्ञा देता है तब अशोक नगर में कुबेर समवशरण की रचना करता है ।

कल लगेगा चक्रवर्ती का दरबार

इस दौरान मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने कहा कि सौधर्म इन्द्र के रूप में राकेश अमरोद महामंत्री जैन समाज को सौभाग्य मिला है। कल चक्रवर्ती का दरबार लगेगा जिसमें राज्य व्यवस्था के साथ चक्र रत्न की उत्पत्ति पुत्र प्राप्ति के साथ ही भगवान को केवल ज्ञान की सूचना दूत दारा दी जाती है। जिस पर चक्रवर्ती प्रभु चरणों में उपस्थित होने का आदेश देता है इसका मंचन आज हम देखेंगे। इसके पूर्व आज प्रतिष्ठा चार्य प्रदीप भइया शुयस मुकेश भइया के मंत्रोच्चार के साथ जगत कल्याण की कामना के लिए महा शान्ति धारा हुई जिसमें चक्रवर्ती धर्मेन्द्र रोकड़िया सौधर्म इन्द्र राकेश अमरोद कुबेर इन्द्र सतीश राजपुर महायज्ञ नायक संजीव श्रागर बहुवलि मनोज रन्नौद सहित सभी इन्द्रो ने सौभाग्य प्राप्त किया। इसके बाद भगवान की महा आराधना भक्तिभाव से की गई । इस दौरान तमिलनाडु से पधारे भक्तो व कोलारस संजय भोपाल मुंगावली सहित अन्य के भक्तों ने श्री फल भेंट किए। 20 तारीख को भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा प्रातः साढ़े आठ बजे सुभाषगंज मैदान से शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर धर्म सभा में बदल जायेंगी जहां आचार्य श्री आर्जवसागरजी महाराज धर्म सभा को सम्बोधित करेंगे।

तीर्थंकर के कुल में कोई बहरा गुगा नहीं होता

धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज ने कहा कि श्रावक श्रेष्ठी के रूप में चक्रवर्ती प्रभु के चरणों में बैठकर प्रश्न करते हैं कि हमारा कुल कितना महान है इस कुल तीर्थंकर चक्रवर्ती महापुरुषों हुए लेकिन ऐसे कुल में कुछ बेटे अभी तक नहीं बोले तो क्या ये गुगे बहरे है तव भगवान की वाणी में आया ब्रसभसेन गणधर ने समझाया कि ऐसे महान कुल में कोई गुगा बहरा नहीं हो सकता ये सीधे भगवान से वोलेगे मुनि महाराज बनेगे। रत्नात्रय धर्म है उक्त आश्य के उद्गार सुभाष गंज मैदान में समवशरण की विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्रीआर्जवसागर जीमहाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि लक्ष्य के बिना कोई कदम भी बाहर नहीं निकलता पहले आप लक्ष्य को निर्धारित करते हैं फिर आप चलते हैं। ऐसे वस्तु स्वभाव धम्मों वस्तु का स्वभाव ही धर्म है सम्पूर्ण कर्मो के अभाव से स्वाभाव की प्राप्ति होती है। आप समवशरण में बैठकर चौबीस समवशरण महा मंडल विधान कर रहे हैं प्रतिष्ठा चार्य प्रदीप भइया मुकेश भ इया जो स्वयं ब्रति है हमारे गुरु जी की परम्परा में तो अव ब्रति ही महोत्सव करते हैं दूध अग्नि पर रखा है तो उबलने लग जायें तो उसमें थोड़ा पानी डाल दो वह वैठने लग जायें तो वह स्वभाव में नहीं आया उंगली को डालकर देखो तो उंगली जल जायेगी जब आप अग्नि को हटा देंगे तब वह स्वभाव रुपी सहजता को प्राप्त कर लेते हैं। इसी प्रकार क्रोध मान माया राग दोष आदि को छोड़गे तब आप अपने स्वरूप की ओर जा सकते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि श्रावको के भी तप होते हैं। दया धर्म का मूल है। सभी के जीवन में दया और क्षमा होना चाहिए जब तक जीवन दया करुणा क्षमा नहीं है तब तक आप कुछ भी करते रहे सुख नहीं मिल सकता। सुख पाने के लिए दया क्षमा को ही लाना होगा।

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