कोडरमा, झुमरीतिलैया। गुरु गौरव गाथा जीत का सुयश” नाट्य मंचन के द्वारा झुमरीतिलैया में चातुर्मास कर रहे जैन संत सुयश सागर जी के आज तक के संपूर्ण जीवन परिचय को दिखाया गया। पूज्य जैन संत सुयश सागर जी के दीक्षा जयंती पर रात्रि में उनके बचपन से गृहस्थ अवस्था सेमुनि अवस्था तक के जीवन चरित्र को समाज के बच्चे युवक युवतियों ने नाट्य मंचन के द्वारा सजीव रूप में प्रस्तुत किया। श्री दिगम्बर जैन समाज झुमरीतिलैया कोडरमा, झारखण्ड सुयश वर्षा योग समिति 2023 के सानिध्य में परम पूज्य चर्या शिरोमणी आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य श्रमण मुनि श्री 108 सुयश सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से प्रथम बार जैन संत मुनि सुयश सागर महाराज ग्रहस्थ जीवन के जितेश भैया से जैन संत कैसे बने उनके जीवन की गाथा पर एक गुरु गौरव गाथा का मंचन महावन्दना ग्रुप के निर्देशन में किया गया जिसमें दुर्ग में जन्मे जितेश भैया शुरू से ही धार्मिक स्वभाव के थे उनको किसी का दुख नही देखा जाता था 14 वर्ष की आयु से ही मंदिर और समाज सेवा में लगे रहते थे 1997 में आयरिका 105 पूर्णमति माता जी से 5 वर्ष का ब्रह्मचर्य नियम लेकर संयम मार्ग पर बढ़ गए । उसके बाद धीरे धीरे संयम की ओर बढ़ते हुवे 2007 में आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी मुनिराज के साथ पैदल साथ मे चलते हुवे सम्मेदशिखर जी पहुंचे और तीर्थराज सम्मेदशिखर जी की दर्शन करते हुए उनके मन में वैराग्य उमड़ गया । उसके पश्चात यहां से सीधे अपने गुरु विशुद्ध सागर जी महाराज के चरणों में अशोकनगर पहुंचकर दीक्षा देने का निवेदन किया गुरुदेव ने उनको संबोधन करते हुए कहा जैन संत बनना कोई हंसी खेल नहीं है यहाँ सब कुछ छोड़ना ही छोड़ना है एक समय विधि मिलने पर भोजन करना है पूरा भारत पैदल घूमना है कभी स्नान नहीं करना है और अपने हाथों से बालो को हटाने की क्रिया करना पड़ेगा और आहार में अंतराय का विशेष ध्यान रखना पड़ता है और गृहस्थ जीवन के पूरे परिवार से नाता नहीं रखता है अब आपका परिवार पूरा भारत हो जाएगा और अब आपको सबके जन जन की कल्याण की भावना ओर अपना कल्याण धर्म कार्य के लिए समर्पित कर देना होगा आप तैयार हो तो दीक्षा दी जाएगी लेकिन जितेश भैया के मन में वैराग्य कूट-कूट कर भर गया था उन्होंने कहा मुझे जैन संत बनकर मोक्ष मार्ग की ओर जाना है ओर अपना कल्याण करना है।
जितेश भैया ने दीक्षा के लिए गुरु चरणों मे श्रीफल चढ़ाया। गुरुदेव ने जितेश भैया के पिता त्रिलोक चंद माता मंजू देवी बाकलीवाल परिवार को बुलाया गया ओर पूछा कि इनको दीक्षा दी जाए तो पिताजी ने कहा की गुरुदेव ये बचपन से ही बहुत ही शांत और धर्म के प्रति समर्पित है ये दिन का अधिकतर समय मंदिर में ब्यतीत करता है और दुर्ग नगरी या आस पास भी कोई भी जैन संत आते थे तो ये जितेश दिनभर गुरु की सेवा में लगा रहता था इसका वैराग्य की प्रबल भाव है इसलिए इसको दीक्षा देने की विनती करता हु ।इस तरह पूरे परिवार की स्वीकृति मिलने के बाद और अशोक नगर मध्य प्रदेश में उनको 14 अक्टूबर 2009 में मुनि दीक्षा देकर जितेश भैया का नाम मुनि सुयश सागर जी दिया गया ।मुनि सुयश सागर जी 14 वर्षो से गुरुदेव आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी का आशीर्वाद से जन जन का कल्याण कर रहे हैं इस वर्ष झुमरीतिलैया नगरी को मंगल आशीर्वाद मिल रहा है।आज से विश्व शांति महायज्ञ 8 दिवसीय 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान मुनि श्री के सानिध्य में प्रारंभ हुआ इस गुरु गौरव गाथा का मंचन में विशेष रूप से लोकेश पाटोदी, दीपाली पाटौदी,सुमित सेठी,रौनक कासलीवाल,राजीव छाबडा,मनीष गंगवाल,पं. अभिषेक जैन शास्त्री कुणाल ठोल्या,संजय छाबड़ा, अमित गंगवाल, अमित सेठी, संजय ठोल्या, ईशान सेठी, प्रशम सेठी, ईशान कासलीवाल, पियूष कासलीवाल, ऋषभ काला, सिद्धांत सेठी, अंकित ठोल्या,मयंक गंगवाल, आदि ने सहयोग दिया और विशेष रूप से कलाकार मोहित सोगानी,अतिवीर ठोल्या ,आदि लगभग 40 कलाकार ने इस नाटक का मंचन किया,समाज के उपाध्यक्ष कमल सेठी, मंत्री ललित सेठी,राज छाबडा, कोषाध्यक्ष सुरेन्द काला, चातुर्मास संयोजक नरेंद झांझरी,सुनीता सेठी,ममता सेठी,दिलीप बाकलीवाल,वार्ड पार्षद पिंकी जैन,मीडिया प्रभारी राज कुमार अजमेरा,नविन जैन ने सभी कलाकारों को बधाई दी।