Saturday, September 21, 2024

प्रकृति ने कुछ कार्य अपने हाथों में रखें है जिससे सन्तुलन बना रहे : मुनि पुंगव श्रीसुधासागर जी महाराज

श्रमण संस्कृति सम्मेलन मे हुआ विद्वानों का सम्मान
कमीयों को उजागर करने वाले सब जगह घूम रहे हैं
तीर्थ क्षेत्र से कहीं बड़ा कार्य है संस्थान का संचालन-मुनिश्री

ललितपुर। प्रकृति ने कुछ कार्य अपने हाथों में लेकर संसार को बढ़ाने का प्रयास किया हैं जैसे प्रकृति से जब किसी बालक का जन्म होता हैं तो उसे एक समान ही बनाया हैं मृत्यु भी निश्चित तरीके से बनाई हैं यानि शरीर त्याग करना वह भी सभी का एक सा होता हैं लेकिन इन दोनों स्थितियों के बीच जो जीवन बचता हैं वह सभी का भिन्न भिन्न होता हैं ,,, बीच के इस जीवन को हम या तो खुद बनाते हैं अथवा हमारे परिजन ,, उक्त आश्य के उद्गार मुनि पुगंव श्री सुधा सागरजी महाराज ने ललितपुर में संस्कृति संस्थान स्नातक सम्मेलन को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने बताया कि आज से पच्चीस वर्ष पूर्व आध्यात्मिक संत मुनि पुगंव श्री सुधा सागरजी महाराज की प्रेरणा से जयपुर चातुर्मास उपरांत श्रमण संस्कृति संस्थान की स्थापना 45 विद्यार्थीयो के साथ हुई थी । जो आज देश के विभिन्न नगरों में समाज का मार्ग दर्शन कर रहे हैं । संस्थान से सैकड़ों विद्वान तैयार होकर देश भर के जिनालयों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं । जिनमें से आज परम पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य चयनित विद्वानों का सम्मान किया जा रहा है । सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुनि पुगंव ने कहा कि डॉक्टर का कार्य प्रशंसनीय हैं क्योंकि वह इलाज करके रोगी को ठीक करता हैं इंजीनियर प्रशंसनीय हैं क्योंकि अच्छा निर्माण करता हैं लेकिन एक ऐसे व्यक्त्वि की खोज करने निकले जो जीव उद्धार करते हुए प्रशंसनीय हो तो आपको वह केवल सांगानेर संस्थान में ही मिलेगा । सभी स्नातकों को आशीर्वाद देते हुए पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि आप सभी को संस्थान में रहते हुए स्वयं की आजीविका कमाते हुए दुसरो के उद्धार के लिये प्रमुखता से कार्य करना चाहिये । आजीविका समस्या है तो रोगी के लिए दवा की तरह परामर्श समाधान हैं । लेकिन संस्थान में पढ़ाई गयी शिक्षा और संस्कार का असर जब भी दिखे तो जीव उद्धार के रूप में ही दिखे। धर्म क्षेत्र में अच्छाइयों का प्रचार नहीं होता कमीयों को उजागर करने वाले ज्यादा है । उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति जो धर्म क्रिया करता हैं और उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाये तो वह हजारो को सुनाता हैं लेकिन धर्म क्षेत्र में कुछ अच्छा होने पर वह उसका प्रचार नही करता यही विषमता दुनिया मे धर्म को प्रभावित करती हैं ।जैसे पांच लोगों ने शांतिधारा की और उनमें से एक के कार्य की सिद्धि नही हुई उसने हजारो से कहा लेकिन जिन चारो के कार्य की सिद्धि हुई उन्होंने किसी से कुछ नही कहा । तब सोचिये एक आदमी ने चार लोगों को पीछे कर दिया । मेरा सभी स्नातकों से कहना हैं कि आप अपने विचारों को इस तरह लोगो तक पहुचाने का प्रयास कीजिये कि सुनते ही दूसरों के मन ललक जाए कि हम भी संस्थान में जाकर स्नातक की पढ़ाई करेंगे। यही कार्य आपके संस्थान को प्रसिद्धि दिलाता हैं संस्थान की प्रभावना करता हैं । आप अपने कार्य से इतनी प्रसिद्धि प्राप्त कीजिये कि आपके नाम से आपका गांवों और शहर का नाम रोशन हो,गाव व शहर के प्रत्येक व्यक्ति द्वारा यह कहा जाए कि हमारे गाँव के एक स्नातक के बनते ही हमारे गाँव के सभी व्यक्ति सुधर गए हैं। उन्होंने कहा कि एक दानवीर आशारानी पांड्या जी के बारे में कहते हुए कहते है कि वे जब पाठशाला के अधिवेशन में आई और उन्होंने वहां के माहौल को देखा तो बहुत ही हर्षित हुई गदगद हो गयी और इतना बड़ा दान देकर गयी कि पाठशाला जिंदगी भर के लिये अमर हो गयी।

तीर्थो से अधिक शुकुन मिला संस्थान की स्थापना से

मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने बताया कि पूज्य श्री कहते हैं मैने इतने तीर्थो का निर्माण कर लिया है कि मुझे गिनती नही पता लेकिन जब भी संस्थान को देखता हूं तो गौरवान्वित हो जाता हूँ कि मैने एक महातीर्थ का निर्माण हुआ हैं दानवीर भामाशाह अशोक पाटनी का प्रसंग सुनाते हुए कहते हैं कि में दुनिया मे कही भी दान देता हूं उससे कही अधिक खुशी तब होती हैं जब सांगानेर संस्थान में दान देता हूँ । रतन लाल बैनाड़ा साब के बाद डॉ शीतल शास्त्री साब , डॉ जय कुमार साब आदि ने मिलकर संस्थान को जो उचाईया देने का प्रयास किया हैं । वह अनुकरणीय हैं जयपुर के रहने वाले राणा जी और गोधा जी के जाने के बाद उनकी कमी को पूरा करने वाली कार्यकारणी को निर्देश और आशीर्वाद देते हुए पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि अब यह सभी भली भांति संस्थान को बढ़ावा दे रहें हैं। श्रीष जैन ने बताया कि श्रमण संस्कृति के बारे में विस्तार से चर्चा कहते हुए गुरुदेव भाव विव्हल हो उठे और आज उनके प्रत्येक शब्द केवल और केवल संस्थान के लिये थे । वे संस्थान को बहुत उचाईयो पर देखना चाहते हैं उनका प्रत्येक स्नातक से कहना हैं कि प्रत्येक स्नातक इतनी प्रसिद्धि प्राप्त करें कि स्नातक से संस्थान की पहिचान बनें । कार्य स्नातक करें नाम संस्थान का रोशन हो।

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