Sunday, November 24, 2024

मानवीय संवेदनाओं का ह्रदय स्थली है काव्य संग्रह कैलाशी

पुस्तक समीक्षा

काव्य संग्रह : कैलाशी

लेखिका : डॉ. कांता मीना
प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर बीकानेर
प्रकाशन वर्ष : 2023
पृष्ठ 112 मूल्य ₹ 300

देश की जानी-मानी लेखिका डॉ. कांता मीना की कहानियों के बाद कैलाशी शीर्षक से काव्य संग्रह सूर्य प्रकाशन बीकानेर से प्रकाशित हुआ। कैलाशी डॉ. मीना का प्रथम काव्य संग्रह है। जिसमें 69 कविताओं को समाहित किया गया है। काव्य संग्रह की पहली कविता है, “हे कैलाशी” जिसको ही पुस्तक का शीर्षक बनाया है। शीर्षक रचना लेखिका ने अपनी मां कैलाशी के नाम पर लिखा है। लेखिका में मां के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा दर्शाती है।
वे कहती है की हे कैलाशी मैं रहूंगी सदा तुम्हारे दर्शन की अभिलाषी,तुम्हारी मोहिनी मूर्त हृदय में ऐसे रची बसी है जैसे भूलोक पर प्राण वायु जरा जरा सी।काव्य संग्रह की एक अन्य कविता है “मां तुम बहुत याद आई” इसको पढ़ने से लगा की लेखिका का अपनी मां से गहरा लगाव रहा है। जिसे वे भूल नहीं पा रही है। डॉ. मीना इस कविता में कहती है जब छुट्टियों में मां मै घर आई दरवाजे के बाहर तेरी जूतियां न पाई। परिंडे से लेकर बाड़े तक छत से लेकर चौबारे तक तुझे ढूंढ आई पर तू कहीं ना पाई यह कविता ग्राम भाषा में रची है। जिसे पढ़ते वक्त आंखें नम हो जाती है । डॉ. कांता मीना को अपनी मां से विशेष लगाव है जिसके कारण इसी संग्रह में वह मां पर एक और नई कविता का सृजन करती हैं कविता का शीर्षक है “मां” इस मां कविता के द्वारा वे कहती है की। मां ने मुझे निडर बनाया है। मां ने ही सत्य के पथ पर चलना सिखाया है। वे कहती है मां ने सिखाया ही नहीं था डरना बस चुप रहकर अपने घावो को मरहम बनाकर खुद ही तो था भरना ।लेखिका ने पिता पर भी काव्य का सृजन किया है इस संग्रह के पृष्ठ 18 पर अंकित है “पिताजी “शीर्षक से कविता जिसमें पिता की महिमा का गुणगान किया गया है। पिता के त्याग व बलिदान को हर कोई नहीं देख पाता। पिता शांत रहकर अपने बच्चों के भविष्य को संवारता हैं। इस कविता में लेखिका यही बताना चाहती है कि त्याग व बलिदान का दूसरा नाम है पिता। डॉ. मीना खूद आदिवासी समुदाय से होने के कारण गर्व से कहती हैं “हां हम आदिवासी हैं” इस कविता में आदिवासी समुदाय आज भी आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परंपराओं को निभाते आ रहे हैं इसी का बखान किया गया है। आधुनिकता के साथ-साथ हम आज भी अपनी परंपराएं निभाते हैं। हां हम आदिवासी हैं। हर क्षेत्र में अपना परचम लहराते हैं। इसके अलावा इसी संग्रह के पृष्ठ 43 पर “आदिवासीयत” को बताती एक कविता और है। जिसमें लेखिका आदिवासी क्या है उनकी परंपराएं रीति रिवाज क्या है यह बताती है। लेखिका ने इस संग्रह में भारत के वीर सैनिकों को की जिंदगी को बयां करती कविता भी लिखी है जो पृष्ट संख्या 47 पर “रणबांकुरे” शीर्षक से है। इस कविता मे लेखिका कहती है। सरहदों पर जो तुम रणबांकुरे इस कदर खड़े हो। तुम कहां उन दुश्मनों से डरे हो फौलादी है जज्बात तुम्हारे तुम तो उस हिमालय की चोटी से भी बड़े हो। बेटियां बाप के सिर की पगड़ी होती है। लेकिन समाज में बेटियों का होना आज अभिशाप सा हो गया है। लेखिका डॉ. मीना अपनी कविता बेटियों के माध्यम से बेटियों को अपने सपनों की उड़ान भरने की प्रेरणा देती है वे कहती है। आसमान कहां तय करता है उड़ान उनके सपनों की। बस अंतिम छोर के क्षितिज तक उड़ान चाहती है बेटियां। काव्य संग्रह कैलाशी को पढ़ने से लगता है की लेखिका अपनी मां से विशेष लगाव रखती हैं। इसलिए वे मां पर एक और कविता लिखती हैं। जिसमें वे दिन भर कार्य करते हुए मां की चिंता व्यक्त करती है। लेखिका लिखती है एक मां ही है तो है जो कभी आराम नहीं करती। डॉ.मीना ने चंबल ढूंढ रही है,भागीरथ कविता के माध्यम से पूर्वी राज्य में पानी की कमी का वर्णन किया है। साथ ही महंगाई,बचपन,सड़क,लक्ष्य जैसी कविताओं में अपनी उम्दा लेखनी का परिचय दिया है। काव्य संग्रह कैलाशी की अन्य सभी रचनाएं मानवीय संवेदनाओं से भरी हुई है। क्योंकि लेखिका एक संवेदनशील महिला है। जो अपने हर रूप में परिपूर्ण है। डॉ.मीना काव्य संग्रह कैलाशी की भूमिका में लिखती है की कविता पाठकों को उनके हृदय के भीतर उत्पन्न होते स्थाई भाव को जागृत करने का कार्य करती आई है। डॉ. मीना ने काव्य संग्रह कैलाशी में अपने मन के भावो को लिखा है।

समीक्षक: राजेंद्र यादव आजाद
(साहित्यकार ) व वरिष्ठ सहायक
रा.उच्च मा.वि.कुंडल, जिला दौसा, राजस्थान।

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