Sunday, September 22, 2024

संसार शरीर व भोगों से विरक्ति तप से सम्भव : गुरु माँ विज्ञाश्री माताजी

गुंसी, निवाई। श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ गुन्सी के तत्वावधान में दशलक्षण महापर्व के शुभ अवसर पर श्री दशलक्षण महामण्डल विधान के अंतर्गत आज सातवें दिन उत्तम तप धर्म की पूजन कराने का सौभाग्य कुंदनमल कठमाणा वाले निवाई एवं महेन्द्र गोयल विवेक विहार जयपुर वालों ने प्राप्त किया। आज के चातुर्मास कर्ता परिवार शिखरचंद लालसोट वाले जयपुर वालों ने सौभाग्य प्राप्त किया। पंचमेरु व्रत, दशलक्षण व्रत के उपवास करके श्रद्धालुओं ने उत्तम तप की आराधना की। दूर-दूर से यात्रीगण विज्ञातीर्थ क्षेत्र पर आकर भगवान शांतिनाथ जी की शांतिधारा, पूजा – आराधना करके स्वयं को धन्य कर रहे हैं। आर्यिका विज्ञाश्री माताजी के सान्निध्य में भक्तों ने दश धर्मों का सार समझा। पूज्य माताजी ने उपस्थित जनसमूह को धर्मोपदेश देते हुए कहा कि – कर्मों के लिए जो तपा जाये उसे तप कहते हैं। इच्छाओं को रोकना या जीतना ही तप है। तप बारह प्रकार के होते हैं। अन्तरंग और बहिरंग तप। यद्यपि सम्यक प्रकार से तप तो मुनिराजों को ही होता है, लेकिन श्रावकों को भी शक्ति अनुसार इन तपों की भावना भानी चाहिए। क्यों कि संयम की तरह तप भी चारों गतियों में से मात्र मनुष्य गति में ही संभव है। नरक और तिर्यंच गति में तो दुख की प्रधानता है, लेकिन देवगति में तो जीव को सर्वसुविधायें मिलती है, लेकिन फिर भी वे जीव उत्तमतप धारण करने के लिये तरसते हैं। जिस प्रकार अग्नि का एक तिनका भी बड़े से बड़े घास के ढ़ेर को जला देता है, उसी प्रकार सम्यक तप पूर्व संचित कर्मों के ढ़ेर को जलाकर भस्म कर देता है। संसार शरीर और भोगों से विरक्ति भी तप से ही होती है।

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article