जयपुर। गुलाबी नगरी जयपुर में आचार्य गुरुवर सुनील सागर महा मुनिराज अपने संघ सहित भट्टारक जी की नसिया में चातुर्मास हेतु विराजमान है। प्रातः भगवान जिनेंद्र का जलाभिषेक एवं पंचामृत अभिषेक हुआ , उपस्थित सभी महानुभावों ने पूजा कर अर्घ्य अर्पण किया। पश्चात गुरुदेव के श्री मुख से शान्ति मंत्रों का उच्चारण हुआ, सभी जीवो के लिए शान्ति हेतु मंगल कामना की गई। सन्मति सुनील सभागार मे विमल कुमार जैन, विक्रम काला जैन, देवेंद्र गांधी तथा उदगांव से आए सभी महानुभाव ने अर्घ्य अर्पण कर चित्र अनावरण करते हुए दीप प्रज्जवलन कर धर्म सभा का शुभारंभ किया। उक्त जानकारी देते हुए चातुर्मास व्यवस्था समिति के प्रचार मंत्री रमेश गंगवाल ने बताया , मंगलाचरण व मंच संचालन इन्दिरा बडजात्या जयपुर ने किया । चातुर्मास व्यवस्था समिति के महामन्त्री ओम प्रकाश काला ने बताया कि उदगांव से पधारे अतिथि महानुभावों ने आचार्य श्री के समक्ष श्रीफल अर्पण किया ।चातुर्मास व्यवस्था समिति के मुख्य संयोजक रूपेंद्र छाबड़ा राजेश गंगवाल ने बताया धर्म सभा मे आचार्य श्री का पाद प्रक्षालन महाविज्ञ पुस्तक का हिंदी से मराठी में अनुवाद करने वाली विदुषी महिला अनुपमा जी ने किया।
आचार्य भगवंत ने अपने मंगल उद्बोधन में कहां जैसे बरसात की नदी भरभरा कर आती है वैसी वापस नहीं आती उस ही तरह से जो आयु बीत जाती है वह वापस नहीं आती प्रत्येक समय जीव की नवीन नवीन पर्याय होती रहती है । पल-पल सब कुछ बदल रहा है यहां पंडाल का मंडप सजा है जिस दिन सजा था बहुत सुंदर सजा था वस्त्र बांधे हुए हैं ,पर यह सोचिए जिस दिन सजा था उस दिन से आज तक में बहुत अंतर आ गया है धूल जम गई है कालापन आ गया है। कोई भी चीज हो वह परिवर्तनशील है। नदी की धार बहती चली जाती है वह लौटकर नहीं आती है जीर्णता की ओर जाना इस जातीय पर्याय का स्वभाव है ।आपतो इस दुनिया में निमित्त मात्र हैं हर कोई जीव जो भी इस संसार में आता है वह अपना पुण्य साथ लेकर आता है देव शास्त्र गुरु की आराधना करते रहो, सब ठीक ही रहेगा कभी भी किसी पर टिप्पणी नहीं करना चाहिए। माया छल कपट नहीं होना चाहिए। जीवो को सदैव कर्ता रहना है संसार बनाने के लिए । और सिद्ध बनने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ेगा । जैसे-जैसे निर्मलता बढ़ती है वैसे-वैसे ही स्थिरता बढ़ती चली जाती है।