डॉ सुनील जैन संचय, ललितपुर
सत्यधर्म सर्वधर्मों में प्रधान है, सत्य पृथ्वी तल पर सबसे श्रेष्ठ विधान है। सत्य, संसार समुद्र को पार करने के लिए पुल के समान है और यह सब जीवों के मन को सुख देने वाला है। इस सत्य से ही मनुष्य जन्म शोभित होता है, सत्य से ही पुण्यकर्म बँधता है, सत्य से ही सम्पूर्ण गुणों का समूह महानता को प्राप्त हो जाता है और सत्य से ही देवगण सेवा करते हैं। ‘सत्स प्रशस्तेषु जनेषु साधुवचनं सत्यमित्युच्यते।’ सत् अर्थात् प्रशस्तजनों में अच्छे वचन बोलना सत्य है। सत् अर्थात् समीचीन और प्रशस्त वचन सत्य कहलाते हैं। ये वचन अमृत से भरे हुये हैं। मिथ्या अपलाप करने वाले और धर्मशून्य वचन सदा छोड़ो। र्गिहत, निदित, हिंसा, चुगली, अप्रिय, कठोर, गाली—गलौज, क्रोध, बैर आदि के वचन, सावद्य के वचन और आगम विरुद्ध वचन इन सबको छोड़ो। नीतिकारों ने कहा है कि सत्य गले का आभूषण है, सत्य से वाणी पवित्र होती है। सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं बोलें।साबुन से वस्त्र स्वच्छ होता है। वैसे ही वाणी सत्य से निर्मल होती है। सत्य पर सारे तप निर्भर करते हैं। जिन्होंने सत्य का पालन किया, वे इस संसार से पार हो गए, मुक्त हो गए। सत्य ही संसार में श्रेष्ठ है। हित-मित-प्रिय बोलें : सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है। हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए । जब भी बोलें हित- मित- प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए तथा कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। कठोर वचन सत्य की श्रेणी में नहीं आते।
सत्यवादी की जग में सदा ही विजय होती है। इसीलिए कहा है सत्यमेव जयते। जैन दर्शन में सत्य का अर्थ मात्र ज्यों का त्यों बोलने का नाम सत्य नहीं है, बल्कि हित-मित-प्रिय वचन बोलने से है। हितकारी वचन यानि जिसमें जीव मात्र की भलाई हो, कहने का अभिप्राय ये है कि जिन वचनों से यदि किसी जीव का अहित होता हो तो वे वचन सत्य होते हुये भी असत्य ही है। मित यानि मीठा बोलो अर्थात् कड़वे वचन, तीखे वचन, व्यंग्य परक वचन, परनिंदा, पीड़ाकारक वचन सत्य होते हुये भी असत्य ही माने गये हैं। प्रिय वचन यानि जो सुनने में भी अच्छे लगे, ऐसे वचन ही सत्य वचन हैं। सत्य वचन दया धर्म का मूल है , अनेक दोषों को दूर करने वाला है , या यों कहिये सत्य धर्म संसार सागर से पार उतारने में जहाज के समान है। सत्यवादी की देवता भी सहायता करते हैं। अणुव्रत और महाव्रत भी सत्यव्रती के ही सम्यक होते हैं। और निर्वाण की प्राप्ति भी सत्यव्रती को ही होती है।