उदगाव/महाराष्ट्र। अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी मुनिराज का मंगल चातुर्मास उदगाव महाराष्ट्र में हो रहा अन्तर्मना ससंघ ने आज समाधिस्थ आचार्य श्री 108 शांति सागर जी मुनिराज की समाधि दिवस मनाते हुवे अपने उदगार में कहा कि समाधिस्थ आचार्य इस सदी के प्रथम आचार्य थे। मुनि परम्परा के गौरव, आचार्य परम्परा के शिखर, चर्या के मूलाचार, समता के समयसार, संकल्प के महाभट्ट चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर – जी महाराज।
मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी पूंजी, अच्छे विचार, अच्छे संस्कार और अच्छा स्वभाव,, इन सब गुणों से हरे भरे व्यक्तित्व का नाम था चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज। उन्होंने बाल्यकाल में भले ही ग्रन्थ ना पढ़े हों, परन्तु निर्ग्रन्थ होने की ललक बचपन से ही थी। उनके धर्म निष्ठ पिता भीम गौड़ा पाटिल एवं धर्म परायण माता सत्यवती से प्राप्त संस्कारों के बल
पर –
- 18 वर्ष की बाल्यकाल में बिस्तर पर सोने का त्याग कर दिया। • 25 वर्ष की उम्र में जूते चप्पल का त्याग कर दिया।
- 32 वर्ष की उम्र में घी, तेल का त्याग कर, एक बार भोजन करने का नियम ले लिया। और एकान्तर व्रत ले लिया। (एक दिन भोजन, एक दिन उपवास) यह सब शरीर के प्रति अनाशक्ति का परिचय था ।
- 41 वर्ष में गृह त्याग करके देवेन्द्र कीर्ति मुनिराज से क्षुल्लक, एलक और जैनेश्वरी दीक्षा को धारण कर, पांच वर्ष बाद आचार्य बनकर सम्पूर्ण दिगंबरत्व को एक नई पहचान दी।
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री ने साधना काल में 9938 उपवास करके श्रेष्ठतम समाधि का वरण किया। 68 वीं समाधि उत्सव पर मेरे अनन्त प्रणाम। उनकी साधना, समाधि का अतीत, मेरा भविष्य बने ,यही प्रार्थना गुरूदेव से…!!!
अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज
संकलन कर्ता कोडरमा से राज कुमार अजमेरा