आचार्य रत्न श्री देश भूषण जी महाराज से आचार्य पद प्राप्त सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कुन्दकुन्द भारती दिल्ली में आयोजित एक धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए 24 जुलाई, 2010 को कहा था कि- साधु और श्रावक एक दूसरे के पूरक हैं। निश्चय और व्यवहार धर्म यह दो अलग अलग हैं। अनेक महापुरुषों पर संकट आये हैं। भगवान आदिनाथ को भी अशुभ कर्मों ने नहीं छोड़ा और 6 महीने तक आहार की विधि नहीं मिली थी।
मयूर पंख पर प्रतिबंध
इसी प्रकार जब 2 मई, 2010 को दिगम्बर साधु समुदाय पर सरकार की ओर से मयूर पंख पर प्रतिबन्ध लगाने की बात को लेकर समाज में चिंता व्याप्त हो गई थी, क्योंकि आदिकाल से दिगम्बर साधु की मुद्रा मयूर पिच्छि एवं कमण्डलु ही है। सरकार के मयूर पंख पर प्रतिबन्ध लगाने के अध्यादेश के कारण जैन समाज में हड़कम्प मच गया, क्योंकि मयूर पिच्छि तो जैन साधुओं का प्रतीक चिह्न है।
आचार्य विद्यानंद जी लिखाया विरोध पत्र
आचार्यश्री ने मयूर पंखों के प्रतिबंध वाले अध्यादेश के विरोध में केन्द्र सरकार को पत्र लिखवा कर और पत्रों के साथ आगमों के अनेक प्रमाण, पुरातत्त्वों से प्राप्त अनेक चित्र आदि प्रामाणिक सामग्री भेजकर यह सिद्ध किया कि यह मयूर पंख धार्मिक चिह्न के रूप में मान्य हैं। अतः इस पर से प्रतिबंध हटाना ही उपयुक्त है क्योंकि किसी भी धार्मिक चिह्न पर प्रतिबन्ध लगाना असंवैधानिक है। केंद्र सरकार ने कालान्तर में मयूर पंख पर लगाए प्रतिबंध को वापस ले लिया था ।
विदेश से आये श्वेत मोर पंख
लेकिन इधर मयूर पंख पर प्रतिबंध की सूचना विदेशों में रहने वाले जैन भक्तों को भी मिली, उन्होंने तत्काल वहाँ से श्वेत मयूर पंख भारत भिजवाये और उनसे निर्मित एक श्वेतपिच्छी तैयार की गई और विद्यानन्द जी श्वेत पिच्छी भेंट की गई ।और उसी समय वहाँ मोज़ूद पूज्य उपाध्याय श्री प्रज्ञसागर जी ने कहा कि अब आचार्यश्री जी का नाम श्वेतपिच्छाचार्य होगा। उपस्थित समुदाय ने उसकी अनुमोदना करते हुए श्वेतपिच्छाचार्य के अलंकरण के साथ जयघोष का उच्चारण किया।
तब से आचार्यश्री जी का विरूद हुआ श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानन्द मुनिराज
राष्ट्र सन्त प्रमुख विचारक, दार्शनिक, संगीतकार, संपादक, संरक्षक, महान् तपोधनी, श्वेतपिच्छाचार्य आचार्य श्री विद्यानंदजी मुनिराज की 94 वर्ष की अवस्था में 22 सितम्बर 2019 गुरुवार को दिल्ली में संल्लेखनापूर्वक समाधि हुई और उस समय मोज़ूद प्रिय शिष्य आचार्य वसुनन्दी जी मुनिराज के अनुसार इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया।
पदम जैन बिलाला
अध्यक्ष
श्री दिगंबर जैन मन्दिर
जनकपुरी -ज्योतिनगर जयपुर