गुंसी, निवाई। भारत गौरव गणिनी आर्यिका 105 विज्ञाश्री माताजी ने भव्य जीवों के लिए धर्मोपदेश देते हुए कहा कि- समता के साथ ममता का विसर्जन करना समर्पण है। समर्पण का दूसरा नाम बलिदान है। अपने मन, वचन, काय रूपी बल का दान करना अर्थात परमात्मा के चरणों मे समर्पित हो जाना उसका नाम समर्पण है। जिस प्रकार बीज मिट्टी में समर्पित होता है तो वृद्धा के रूप में फलित होता है उसी प्रकार प्रभु चरणों में समर्पित होने से स्वर्ग मोक्ष फल की प्राप्ति होती है।
श्री दिगम्बर जैन सहस्रकूट विज्ञातीर्थ के तत्वावधान में गुरु माँ विज्ञाश्री माताजी के ससंघ सान्निध्य में सोलहकारण व्रत पूजन विधानादि का आयोजन चल रहा है। बड़े भक्ति भावों से सुभाष कासलीवाल विवेक विहार जयपुर, विमल जैन झांतला, महेश मोटूका वालों ने शांतिनाथ भगवान की शान्तिधारा सम्पन्न कराई। मूलचंद काला पुरुलिया वालों ने जन्मदिन पर श्री 1008 शांतिनाथ महामण्डल विधान रचाकर पुण्यार्जन किया। आगामी 19 सितम्बर से पर्वराज दश लक्षण महापर्व के अवसर पर श्री दशलक्षण विधान का आयोजन किया जायेगा।