Friday, November 22, 2024

भक्ति से वह शक्ति मिलती है जो मुक्ति का कारण वनती हैं: आचार्य श्री

लोक कल्याण महा मंडल विधान में भक्तों ने की आरती

अशोक नगर। सातिशय पुण्य तीर्थंकर प्रकृति को वाधने में कारण है भक्ति में वह शक्ति मिलती है जो मुक्ति का कारण वनती है प्रकृति अपना काम करती रहती है यहां धर्म की वर्षा हो रही है वहीं प्रकृति ने आसमान से रात्रि में वर्षा होने लगी सब की आश लगी थी ये भाद्रपद मास वर्ष के माह में चक्रवर्ती कहलाता है जिस में सभी धर्मो के पर्व चलते रहते हैं लोग धर्म ध्यान करते रहें उक्त आश्य के उद्गार आचार्य श्रीआर्जवसागर जीमहाराज ने सुभाषगंज मैदान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

पात्रों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया
मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा कहा कि आज जगत कल्याण की कामना के लिए हो रहें श्री लोक कल्याण महा मंडल विधान में सौधर्म इन्द्र वनने का सौभाग्य अजित रितू वरोदिया को एवं चक्रवर्ती वनने का सौभाग्य श्री प्रदीप कुमार अमित कुमार कलेशिया परिवार को मिला जिनका सम्मान पंचायत कमेटी के अध्यक्ष राकेश कासंल महामंत्री राकेश अमरोद कोषाध्यक्ष सुनील अखाई प्रमोद मंगलदीप दारा तिलक श्री फल स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया वहीं श्रावक श्रेष्ठी वनने का सौभाग्य देवेन्द्र कुमार प्रमोद कुमार मंगलदीप एवं सन्तोष कुमार जैन को मिला जिनका सम्मान थूवोन जी कमेटी के महामंत्री विपिन सिंघाई उपाध्यक्ष गिरीष अथाइखेडा पूर्व कोषाध्यक्ष पदम कुमार पम्मी राजेन्द्र अमन संजय के टी सहित अन्य भक्तों ने किया वहीं मंगलगान जिला खाद्य अधिकारी सुश्री मोनिका जैन ने की।
अज्ञान के कारण धर्म कार्य करते समय उत्साह में कमी आती है
आचार्य श्री ने कहा कि धर्म कार्य करते समय उत्साह में कमी क्यों आती है पहला कारण अज्ञान है आत्मा को तप में तपाना पड़ता है तव दूध से नवनीत वनता है और फिर और अधिक तपस्या करने पर घृत के समान परम पावन मुक्ति पद मिलता है। कर्म अपना फल दे रहे हैं यहां आपके वैठने से कितना पुण्य बड़ गया आपको पता ही नहीं चलता आश्रव वंध संवर और निर्जरा एक साथ चलते हैं क्रिया करने से अकेले पुण्य नहीं मिल रहा है उसके साथ संवर और उसके साथ कर्मो की निर्जरा भी होती है।
पाप और पुण्य एक साथ चलते रहते हैं
आचार्य श्री ने कहा कि पाप और पुण्य एक साथ चलते रहते हैं पुण्य प्रकृति शुभ में कारण है वहीं पाप अशुभ मे कारण वनता है जो व्यक्ति नियम संयम लेता है वह असंख्य गुनी कर्मो की निर्जरा करता है अर्थात जो कर्म हमारे उदय में आने वाले हैं उन्हें समाप्त कर देता है उन्होंने कहा कि धर्म की क्रिया से ही पाप नष्ट होते हैं यदि शुभ भावों से कर्मो का नाश नहीं होगा तो फिर कभी कर्मों का नाश हो ही नहीं सकता कुछ लोग जानते हैं नहीं मानते हैं नहीं और ऊपर से तानते अलग है धर्म करना कोई क्रिया कांड़ नहीं है धर्म तो जीवन जीने की कला सिखाता है धर्म को धर्म रूप में ही समझना चाहिए।

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