Sunday, November 10, 2024

आदरणीय श्री राजेंद्र के गोधाजी का पावन स्मरण ( जन्मदिन 5 जुलाई पर )

जन्म के अवसर पर नामकरण उत्सव के समय नामकरण किया जाता है और वही नाम ताउम्र एवं बाद में भी उसका परिचय होता है। सत्यता ये है कि मृत्यु उपरांत व्यक्ति को बॉडी-बॉडी कह कर पुकारा जाता है।
कुछ विभुतियां व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिन्हें ताउम्र नाम से ही याद रखे जाते हैं।
ऐसे ही एक व्यक्तित्व का उल्लेख आवश्यक है वो ‘समाचार जगत’ के संस्थापक श्री राजेन्द्र गोधा जी। ये उनके द्वारा किए गए सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से है।
परमात्मा व्यक्ति के पूर्वजन्मों के अनुसार उनके जन्म का निर्धारण करता है। गोधा जी श्री मूलचंद जी गोधा एवं श्रीमती कमला देवी लदाना वालों के यहां जन्म लिए। दुर्भाग्य से गोधा जी की अल्पायु में ही पिता का साया सिर से उठ गया। लेकिन देवी स्वरूपा उनकी माताजी ने पिता-माता दोनों का दायित्व निभाते हुए अपने बच्चों को सुसंस्कार दिए। उनमें से एक गोधा जी दृढ़ निश्चयी और संघर्षों से नहीं घबराने वाले थे। उन्होंने अपने भाई-बहिनों के साथ-साथ अपने स्वपनों को भी सही राह दिखलायी।
अपनी युवावस्था में युवा अपने केरियर के विषय में सोचता है। तब गोधा जी ने पत्रकार बनने की सोची और अपने पंखों को परवाज देते हुए अखबार के मालिक बन गए। इतना ही नहीं दैनिक अखबार निकालने में जो कठिनाई आती है उसे दरकिनार करते हुए सांध्यकालीन अखबार भी निकाला। ‘समाचार जगत’ एवं ‘सांध्यकालीन समाचार जगत’ ये उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति के परिचायक है।
धार्मिक भावनाएं गोधा जी में कुट-कुट कर भरी हुई थी। उनके घर के सामने टोडरमल स्मारक में दर्शन कर अपनी मां के पैर छू अपनी दिनचर्या प्रारंभ करते थे।
मां के साथ गोधा जी की सहधर्मिणी श्रीमती त्रिशला जी ने भी गोधा जी का साथ निभाया। शांत रहकर सामाजिक पारिवारिक दायित्वों को निभाया। गोधा जी के निधन पश्चात अखबार की बागडोर संभाली, उनके निर्देशन में अखबार नित्य प्रतिदिन प्रगति कर रहा है।
गोधा जी का परोपकारी स्वभाव एवं सहृदयता के कारण उन्हें हमेशा लोगों का सहयोग मिला। महेश जी, गोधा जी के परम आदरणीय थे। अखबार के लिए वो लिखा भी करते थे।
गोधा जी ने कभी कार्यालय में छंटनी नहीं की। उसका परिणाम आज भी पुराने लोग उनके कार्यालय में सम्मानजनक पद पर कार्य कर रहे है। जरूरतमंदों की सहायता करते थे।
जीवन काे उन्होंने कर्मभूमि माना एवं स्वयं को योद्धा। महेश जी के अवसान के बाद एक पारिवारिक सदस्य की भांति मेरा ध्यान रखा। गोधा जी का सबसे बड़ा सरोकार जैन धर्म और संस्कृित को बढ़ावा देना। जैन समाज के किसी उत्सव त्योहार पर बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे, सहयोग करते थे। इसी कारण उन्हें जैन शिरोमणी समाज भूषण पुरस्कार से नवाजा गया। जैन समाज आज भी उन्हें अपना गौरव मानता है।
ईश्वर चौरासी लाख योनियों का लेखा जोखा कर मनुष्य योनि के लिए चयन करता है, जन्म-मृत्यु कर्म सभी का निर्धारण।
जिंदगी सही चल रही थी, गोधाजी संघर्ष कर रहे थे कि कैंसर जैसी बीमारी ने उनके जीवन पर दस्तक दी। इसे भी गोधा जी ने चुनौती मान सामना किया। स्वयं डॉक्टर्स से बीमारी की चर्चा करते थे। अग्रिम इलाज हेतु बम्बई जाकर इलाज करवा आते थे।
जिंदगी का सफर सरल, कठिन, उबड़-खाबड़ रास्तों, खूबसूरत पगडंडियों से बनाए हुए नक्शों पर कई बार ऐसे अचानक मोड़ आते ही वहां व्यक्ति अदृश्य हो जाता है।
गोधा जी अपनी मंजिल तलाश रहे थे कि विधाता ने उन्हें हमारी आंखों से ओझल कर अपनी गोद में ले लिया। नेपथ्य में उनके निधन का समाचार ही गूंजा। अपनी संक्षिप्त यात्रा को पूर्ण करके अखबार के मालिक परमपिता मालिक के पास चले गए। चलिए गोधा जी की मधुर यादों को नमन करते हुए उन्हें सदैव सजीव रखने का प्रयत्न करेंगे।
सादर नमन।

रुक्मणी शर्मा

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