Saturday, September 21, 2024

अन्तर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी के प्रवचन से….

माता, पिता और गुरु जन जीवन जीने की दिशा बताते हैं.. चलना तो स्वयं को ही पड़ता है..!

प्रत्येक माता-पिता अपने पुत्र को वृक्ष के फल की तरह देखते हैं। उसके फल समाज और देश को सुख देगी। पक्षियों को रहने का आश्रय देगी। अपनी वाणी, व्यवहार और चरित्र से समाज और देश को सुवासित करेगी। अच्छी शिक्षा, अच्छे संस्कार और परोपकार से समाज और देश में विकास की भूमिका निभायेगी। यह सब माता पिता के ऋण से उऋण होने के मार्ग है। इस मार्ग में देना ही देना है, लेना कुछ भी नहीं है। क्योंकि

वृक्ष ना खावे अपना फल, नदिया ना पीवे अपना जल ।

लेकिन दुर्भाग्य कहो इस सदी का — आज की शिक्षा ने तीन चीजें बच्चों से छीन ली – माता-पिता, धर्म गुरु और संस्कार। चूंकि माता-पिता के पास भी अपनी सन्तान के अच्छे संस्कारों के लिये समय नहीं है। सन्तान के लिये धन-दौलत, शिक्षा से ज्यादा मूल्यवान अच्छे संस्कार है। क्योंकि अच्छे संस्कार ही समाज और देश का सृजन करेंगे। आज माता-पिता के पास, बच्चों के साथ बैठने के लिए, उनसे बात करने के लिये, आधे-एक घन्टे का भी समय नहीं है।

हमने सन्तान को कमाना सिखाया, धन के आगे सब कुछ छोटा है यह बताया। हमने दूसरों से लेना तो सिखाया लेकिन लौटाना नहीं सिखाया। मानव जाति के प्रति संवेदनशील और जीना नहीं सिखाया। यह सब इसलिए हो रहा है कि हमने सन्तान की ऊंगली पकड़कर चलना छोड़ दिया है। हम भी उनके साथ बंधने को तैयार नहीं है। जो माता-पिता अपनी सन्तान के प्रति चिन्तित नहीं है, वह समाज और देश के प्रति क्या

चिन्तित होंगे ? आज की नई जनरेशन अपने लिये ही जी रही है और माता-पिता, धर्म गुरुओं के नेटवर्क से बाहर जा रही है..

नरेंद्र अजमेरा, पियुष कासलीवाल औरंगाबाद।

- Advertisement -spot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest article