Thursday, November 21, 2024

संतोष रूपी धन जिसके पास उसके लिए तीन लोक का धन धूल समान: दिग्विजय रामजी

नरसीजी जैसे भक्त बन जीए संतोषी जीवन, पुण्योदय से मिलता सत्संग व संत दर्शन का अवसर

सुनील पाटनी/भीलवाडा। भगवान गिरधर गोपाल के भक्त नरसी मेहता के जीवन में कोई लालसा नहीं उनके पास संतोष रूपी धन था। धन कमा लेना, बचा लेना अमीरी नहीं है जिस दिन मन में संतोष के भाव आ जाए उस दिन अमीर है। जिसके पास संतोष रूपी धन है उसके लिए तीन लोको का धन धूल समान है। नरसी मेहता जैसे भक्त बने ओर हर स्थिति में अपने प्रभु पर विश्वास रखे ओर कभी भक्ति भावना में कमी नहीं आने दे। ये विचार माणिक्यनगर स्थित रामद्वारा में भीलवाड़ा के हरिनारायण रामेश्वरलाल डागा परिवार की ओर से आयोजित तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा के दूसरे दिन रविवार को व्यास पीठ से कथावाचक रामस्नेही संत रमतारामजी महाराज के सुशिष्य संत दिग्विजय रामजी ने व्यक्त किए। उन्होंने नरसीजी मेहता को बहन नानीबाई के मायरा भरने के लिए निमंत्रण मिलने, भाई बंधुओं द्वारा आने से इंकार करने पर मायरा पक्ष के नाम पर सूरदास संतों की मण्डली साथ होने, मायरा ले जाते समय गाड़ी टूट जाने पर खाती बन स्वयं मुरली मनोहर के आने जैसे विभिन्न प्रसंगों का वाचन कर हजारों भक्तों को भाव विभोर कर दिया। संत दिग्विजय राम ने कहा कि कई जन्मों के पुण्य उदय होने पर ऐसे तपोस्थली पर कथा श्रवण व सत्संग के अवसर प्राप्त होते है। भजन ओर कीर्तन के प्रभाव से जीवन आनंदमय बन जाता है। कथास्थल पर केवल हमारा तन ही नहीं मन भी होना चाहिए। हमारा शरीर यहां ओर मन कहीं ओर होगा तो कथा श्रवण का लाभ नहीं मिलेगा। भक्ति भावना जागृत होने पर जीवन को नई दिशा मिलती है। उन्होंने आयोजक डागा परिवार की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कथा आयोजन कराने का अवसर किस्मत से ही मिलता है ओर जीवन में जिसे भी ऐसे अवसर प्राप्त हो कभी नहीं चूकना चाहिए। जीवन केवल खाने-पीने में निकल गया तो कोई मतलब नहीं रह जाएगा। मानव जन्म सत्संग से सुधर जाता है। भक्त की भावना होती है तो भगवान उसके ह्दय में विराजकर कथा श्रवण करते है। जीवन का असली आनंद भगवान की कथा श्रवण व सत्संग में ही मिलता है। कथास्थल पर हरिशेवाधाम उदासीन आश्रम के महामण्डलेश्वर हंसारामजी महाराज, रामस्नेही सम्प्रदाय के संत रमतारामजी महाराज, निर्मलरामजी महाराज आदि का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। महामण्डलेश्वर हंसारामजी महाराज ने संतों का शॉल ओढ़ा स्वागत अभिनंदन किया। आयोजक डागा परिवार की ओर से हंसारामजी महाराज, मायारामजी महाराज आदि का स्वागत किया गया। कथा के शुरू में भक्त गिरिराजजी कोठारी ने भी विचार व्यक्त किए। भक्तिरस से ओतप्रोत संचालन पंडित अशोक व्यास ने किया। कथा में व्यास पीठ पर विराजित संत दिग्विजय रामजी का स्वागत करने वालों में संपत नुवाल, चिरंजीलाल नुवाल, रामनिवास जागेटिया, कैलाश मुरकिया, श्यामसुंदर मुरकिया, संदीप मुरकिया, कृष्णगोपाल सोमानी, माहेश्वरी महिला मण्डल की प्रदेश अध्यक्ष सीमा कोगटा, बालमुंकद सोमानी, कृष्णगोपाल लढ़ा, कमलेश सारड़ा, कैलाश गदिया, श्यामसुंदर सोमानी, राधेश्याम बाहेती, दिनेश दरगड़,बाबूलाल काबरा, घनश्याम सोमानी, सुरेश व्यास, महावीर श्रीमाल आदि शामिल थे। तीन दिवसीय आयोजन के समापन दिवस की कथा सोमवार दोपहर 1 बजे से शुरू होंगी।

हमारी जैसी दृष्टि होगी वैसी ही सृष्टि हो जाएगी

संत दिग्विजय रामजी ने कहा कि हमारी जैसी दृष्टि होगी वैसी ही सृष्टि हो जाएगी। दुर्योधन की दृष्टि अच्छी नहीं थी तो उसे एक भी अच्छा आदमी नजर नहीं आया ओर युधिष्ठर की दृष्टि में दोष नहीं था तो उन्हें सृष्टि में कोई बुरा आदमी नहीं मिल पाया। जिसकी सोच नकारात्मक हो जाती है उसे सकारात्मक में भी नकारात्मकता ही नजर आती है। हमारी दृष्टि अच्छी होगी तो हमे सामने वाली की कमियां नहीं गुण नजर आएंगे। उन्होंने सनातन धर्मावलम्बियों के परिवारों में सीमित होती सदस्य संख्या पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि पहले हम दो हमारे दो की सोच बनी जो अब हम दो हमारे एक पर आ गई। ऐसी ही सोच रही तो भविष्य चिंताजनक होगा। हमे आत्मचिंतन कर हालात सुधारने का प्रयास करना होगा।

सनातन संस्कृति का रक्षा करनी होगी- हंसरामजी महाराज

महामण्डलेश्वर हंसारामजी महाराज ने कथास्थल पर मौजूद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सुख चाहो तो सेवा व सुमिरन करो। ऐसे आयोजन कराने का अवसर सौभाग्यशालियों को ही प्राप्त होता है। उन्होंने सनातन संस्कृति का रक्षक बनने की प्रेरणा देते हुए कहा कि महापुरूषों की वाणी ह्दय में अंगीकार करनी चाहिए ओर जीवन में कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। नानी बाई का मायरा कथा प्रेरणा देती है कि हमे भी अपने जीवन में मायरा अवश्य भरना चाहिए। दहेज का विरोध है लेकिन मायरा हमारी सनातन संस्कृति का प्रतीक है। मायरा में क्या दिया वह मायने नहीं रखता लेकिन किस भावना से दिया वह मायने रखती है। जिसके बहन-बेटी नहीं हो उन्हें भी किसी का मायरा भरने का लाभ अवश्य लेना चाहिए।

ईश्वर को प्रणाम कर शुरू की कथा

दूसरे दिन व्यास पीठ से कथा का आगाज करते हुए कथावाचक संत श्री दिग्विजय रामजी ने सबसे पहले ठाकुर गोवर्धननाथ प्रभु, श्रीद्वारकाधीश प्रभु, श्री सांवलिया सेठ, श्री चारभुजानाथ, श्रीनाथजी के साथ स्वामी रामचरणजी महाराज, पीठाधीश्वर आचार्य रामदयालजी महाराज के चरणों में भी प्रणाम किया। गुरूवर व कृष्ण भक्त नरसी मेहता के चरणों में प्रणाम करते हुए उन्होंने कथास्थल पर आए सभी संतों व भक्तों को भी दंडवत प्रणाम किया। कथा में दूसरे दिन भी भक्तगण उमड़ पड़े। भीलवाड़ा शहर के विभिन्न क्षेत्रों के साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में भक्तगण कथा श्रवण के लिए पहुंचे।

भावनाओं के सागर में डूबे भक्त भजनों पर जमकर थिरके

नानी बाई का मायरा कथा के दूसरे दिन कथावाचक संत श्री दिग्विजय रामजी ने भगवान की भक्ति से ओतप्रोत गीतों व भजनों की प्रस्तुतियां दी। कुछ भजनों का ऐसा जादू छाया कि भजन शुरू होते ही भक्तगण अपनी जगह से उठ खड़े होकर थिरकने लगे। उनके द्वारा मेरी झोपड़ी के भाग्य आज खुल जाएंगे राम आएंगे, सांवरिया रे आगे उबो है हाथ जोड़, देखो मेहता नरसीजी आपरो ले जावे जी, नानी बाई का मायरा में चाला, लेवा ने, देवा ने रामजी को नाम है आदि भजनों की प्रस्तुति के दौरान भक्तगणों ने जमकर नृत्य किया।

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